गायत्री साधना से अतीन्द्रिय सामर्थ्य का विकास होता है व परोक्ष के गर्भ में झाँक कर अविज्ञात को देखा जा सकता है। ऐसे ही क्षमता संपन्न साधकों में जीवराम व्यास का नाम प्रख्यात है, जिन्हें पानी वाले महाराज के नाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र के जलगाँव में जन्मे श्री जीवराम बाल्यकाल से ही गायत्री के अनन्य उपासक थे। साधनाकाल में उन्हें अपने हृदय में दिव्य प्रकाश का दर्शन हुआ व प्रेरणा मिली कि परोक्ष दर्शन की क्षमता जो उन्हें प्राप्त है, उसका परमार्थ प्रयोजन के निमित्त उपयोग हो।
भूगर्भ में छिपे पानी के स्रोतों को अपनी दिव्य दृष्टि से वे देख लेते थे व कहाँ कुआं खोदा जाना चाहिए, यह बताकर पानी का अभाव दूर करते थे। फरीदाबाद में जल विभाग के वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी थी कि उनके यंत्रों के अनुसार अब कहीं पानी भूगर्भ में नहीं है किन्तु पानी वाले महाराज ने दिव्य दृष्टि से ऐसे आठ स्थानों को खोजा। प्रत्येक से हजारों गैलन पानी अभी भी रोज निकलता है। सौराष्ट्र की जनता तो ऐसे स्त्रोत बताने के लिए उनकी विशेष आभारी है। वस्तुतः साधना तभी सार्थक व फलवती होती है, जब मानव मात्र के लिए उसका उपयोग हो।