मनु की पुत्री ‘इला’ को ‘यज्ञान काशिनी’ नामक उपाधि प्राप्त थी। उसने अपने पिता तक के लिए यज्ञ कराए थे। भारद्वाज की पुत्री श्रुतावती, तपश्विनी सिद्ध, शाण्डिल्य की पुत्री श्रीमती, वेदविद शिवा, ब्रह्मवादिनी सुलभा, स्वधा की पुत्रियाँ वन्दना और धारिणी आदि अनेक वेदज्ञ महिलाओं का वर्णन महाभारत में आता है। यदि उन्हें वेदों का ज्ञान व अधिकार न होता तो किस प्रकार वे वेदज्ञ कहलातीं? वस्तुतः गायत्री एवं वेद नारी-नर सबके लिए समान रूप से है।
कर सकें तो पंचाधरी (ॐ भूर्भुवः स्वः) का जप कर लें इतना भी संभव न हो तो नियमित दस से चौबीस गायत्री मंत्र लेखन का अभ्यास करें। नियमित उपासना घर में आस्तिकता का वातावरण बनाती है। अनुदान रूप में पारिवारिक सौहार्द्र, भावनात्मक विकास, बौद्धिक प्रगति व सघन-समृद्धि जो भी कुछ अभीष्ट है,सभी देती है। इसका महत्व युग संधि की बेला में तो अत्यधिक है। इसे भली भाँति समझकर हर धर्मनिष्ठ परिजन को इस दैनंदिन जीवन का एक अंग बनाना चाहिए। जिन्हें उपासना क्रम व मंत्रों आदि का विवरण विस्तार से जानना हो, उन्हें शांतिकुंज हरिद्वार एवं युगनिर्माण योजना मथुरा द्वारा प्रकाशित गायत्री संबंधी साहित्य पढ़ना चाहिए। गायत्री उपासना इस कलियुग में एक संजीवनी, महौषधि के समान है। आसन्न विभीषिकाओं से बचने के लिए यह श्रेष्ठतम न्यूनतम आध्यात्मिक उपचार है।