“हर कुफ्र न होता तो में कहता कि तुम खुदा हो”

March 1987

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मनुष्य के अन्दर शैतान का निवास भी है और भगवान का भी। दोनों में से जिसे परिपोषित किया जाता है, वही प्रबल हो जाता है। आत्म-सुधार, परिष्कार करते-करते उसे “आत्मवत् सर्वभूतेषु” की “वसुधैव कुटुम्बकम्” की सिद्धि हो जाती है और किसी को दुःख पहुँचाना तो दूर उलटे सेवा सहायता करने और पुण्य - परमार्थ संचित करने की ही इच्छा बनी रहती है। उसी प्रकार की उदात्त क्रियायें भी उससे बन पड़ती हैं

किन्तु जो अपने शैतान पक्ष को जगाते हैं। वैसे ही चिन्तन, अभ्यास को ढालते हैं। उन्हें दुष्ट दुरात्मा बनने में भी देर नहीं लगती है। दूसरों को कष्ट-पीड़ित देखकर उन्हें मजा आता है और तड़पते हुओं का हृदय विदारक दृश्य उन्हें अपने मनोरंजन या पुरुषार्थ का कारण प्रतीत होता है। कसाइयों की प्रकृति उसी ढाँचे में ढल जाती है। आत्मा के मर जाने से वे ऐसे कृत्य निरन्तर करते रहते हैं। दया, धर्म की अन्तःप्रेरणा उनके मन में जगती ही नहीं। डाकू, हत्यारे, अपहरण कर्त्ता, बलात्कारी, विश्वासघाती भी प्रायः ऐसी ही प्रकृति में ढल जाते हैं।

संसार विचित्र है। इसमें जहाँ भागवत-परायणों की कमी नहीं वहाँ शैतान के पक्षधर भी अनेकों हैं। भारत पर चंगेजखाँ, नादिरशाह आदि ऐसे कितने ही नृशंस आक्रमणकारी आते रहे हैं, जिनने धन-लूटने और निर्दोष मनुष्यों की हत्या करने के कीर्तिमान स्थापित किए। पिरामिड बनाने और चीन की दीवार खड़ी करने में कितने ही पकड़े हुए गुलामों को अपने प्राण झोंकने पड़े हैं।

पिछली शताब्दियों में ऐसे ही क्रूरकर्माओं के अनेक उदाहरण सामने हैं।

बगदाद को शासक वलबिर-बिल्लाह को उसके विरोधियों ने अन्धा करके जेल में डाल दिया। जब मर्तजी गद्दी पर बैठी तो उसे जेल से तो रिहा कर दिया, पर गुजारे को कोई इन्तजाम न किया। इस पर एक दिन का बादशाह सड़क पर भीख माँगकर पेट पालने के लिए गुजारा करता रहा। जिन्दगी के अंतिम 16 वर्ष उसने इसी प्रकार गुजारे।

सन् 1466 में क्रिसमस के दिन विलियम प्रथम का राज्याभिषेक हुआ। पादरी ने प्रवक्ता से कहा “पूछो कि सभी उपस्थित जनो ने राजा का आधिपत्य स्वीकार कर लिया है न”? प्रवक्ता ठीक से मतलब नहीं समझ सका और उसने सारे शहर में आग लगा देने और कत्लेआम मचा देने की आज्ञा दे दी। अगणित निर्दोषी नर-नारी मारे गये और अग्नि काण्ड में अपार-संपदा की हानि हुई। वेस्ट मिस्टर एबी का एक बड़ा भाग बर्बाद हो गया।

पौस्थुमस ने अपने साथ डाकुओं का गिरोह इकट्ठा किया और वह उनका नेता बनकर लूट-पाट कराता रहा। उसने अपने को राम का शासक भी घोषित कर दिया। जब साथियों ने एक धनी कस्बे को लूटने की इजाजत चाही तो उसने इन्कार कर दिया। इस पर साथियों ने उसी का कत्ल कर दिया और मनमानी करते रहे। अंततः जनता ने उनका भी कत्ल कर दिया।

मोरक्को का सुलतान मुले इस्माइल जब सिंहासनारूढ़ हुआ तो उसने हर बार एक सईस का कत्ल किया। निजी नौकरों में से उसने 10 हजार को बिना कसूर मार डाला था। वह कहता था जो हाथों मरेगा वह सम्मानित होगा।

मिस्र पर ईसा से 246 वर्ष पूर्व टोलेमी नामक राजा राज्य करता था। उसने अपने भाईयों को सबसे अधिक प्यार करने वाला कहकर प्रख्यात कराया जबकि वस्तुतः राज में बाधक समझकर उसने सभी भाई मरवा डाले थे।

इसी प्रकार उस देश पर राज्य करने वाले किंग चतुर्थ ने अपने बाप को मार कर गद्दी हथियायी थी और “बाप का सच्चा सेवक” के रूप में अपने को प्रख्यात कराया था।

बिदिन के शासक हाफिजअली को जिस पर भी अपना विरोधी होने का शक होता उसी को बिना कुछ पूछताछ किये, मरवा देता था। इस प्रकार उसने अपने शासनकाल के 20 वर्षों में 7 हजार व्यक्तियों का कत्ल कराया था।

चीन में क्रान्तिकारियों को 1947 से 1965 के बीच 2 करोड़ 63 लाख नागरिकों को मृत्यु दण्ड मिला। इस संदर्भ में जो अनुमान छपा है, उसके अनुसार इस प्रकार मरे व्यक्ति 6 करोड़ 37 लाख थे। रूस में भी ऐसा ही अभियान छिड़ा था जिसमें 1 करोड़ के करीब को शुद्धिकरण के नाम पर मौत के घाट उतारा गया। नाजी जर्मनी में हिटलर ने अपने ही 9 लाख देशवासियों की हत्या की थी। अन्यान्य देश के लोगों के मरने वालों की तो गिनती ही नहीं है। कोटुला टैक्सास की जान हर्ष एक निर्दय शिकारी थी। उसने खाने के लिए नहीं, मरने वालों की तो गिनती ही नहीं है। कोटुला टैक्सास की जान हर्श एक निर्दय शिकारी थी। उसने खाने के लिए नहीं, मरने ले की तड़पन देखने के लिए 25000 कुत्ते 25000 छोटी बिल्लियाँ 11,000 भेड़ियों और 2000 सियारों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।

पोलैंड का राजकुमार फर्डिनेन्ड निरीह पशुओं की हत्या के लिए ही जंगलों में घूमा करता था। उसने 2 लाख 76 हजार वन्य पशु पक्षी मौत के घाट उतारे थे। इसी की हत्या प्रथम विश्व युद्ध का कारण बनी।

काहिरा में एक मस्जिद वास्तुकार यूसेफ से बनवाई गई। 25 वर्ष में जब बनकर तैयार हो गई तो शासक पासा ने कारीगर को अन्धा कर देने का हुक्म दिया। ताकि वह कोई ऐसी सुन्दर मस्जिद और नहीं न बना सके। यही बात ताजमहल के संबंध में भी कही जाती है।

रूस के कैथेडल नगर में दि टैरिवल ने अपनी विजय के उपलक्ष में एक गिरजा घर बनवाया। वह बहुत सुन्दर बन गया। शासक ने बनाने वाले मिस्त्री योस्तानिक के हाथ पैर कटा लिए, ताकि वह कोई दूसरा वैसा ही गिरजा न बना सके।

लूटपाट के लिए प्रतिष्ठा एवम् दर्प के लिए कितनी ही छोटी बड़ी लड़ाइयाँ पहले भी होती रहती थीं। पर पिछले द्वितीय महायुद्ध ने तो उसकी अति ही कर दी। कहते हैं पृथ्वी के इतिहास में जितने भी युद्ध हुए उनकी तुलना में यह अकेला द्वितीय महायुद्ध ही सब के योग से भी भारी पड़ा। इससे अपार जन-धन की हानि हुई।

द्वितीय विश्वयुद्ध में 1939 से 1945 तक यस के ढाई करोड़ सैनिक और 78 लाख सेनाधिकारी मारे गए। दोनों पक्षों के प्रायः 5 करोड़ 48 लाख व्यक्ति मारे गये।

युद्ध में पोलैंड सबसे अधिक घाटे में रहा, उसकी ढाई करोड़ आबादी में से प्रायः आधी आबादी बर्बाद हो गई। इस युद्ध में रूस के 25000 करोड़ रुबला, अमेरिका के 5100 करोड़ डॉलर और ब्रिटेन के 300 करोड़ पौण्ड खर्च हुए। अन्य देशों को जो हानि उठानी पड़ी, इसके अतिरिक्त है।

सन् 1982 में सरकारी रक्षा बजट 171023 करोड़ डॉलर का था। इन तीन वर्षों में यह प्रायः दून हो गया है। सबसे बड़ी सशस्त्र सेना चीन की है 48 लाख। रूस की सैनिक संख्या 37 लाख और अमेरिका की 29 लाख है।

इक्वेटोरियल गिनी के राष्ट्रपति ने 7 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए सैनिक शिक्षा बाधित कर दी है। लाओस पर विभिन्न युद्धों में प्रायः 25 लाख टन के वजन के बम गत बीस वर्षों में गिराए गए हैं।

मनुष्य वस्तुतः पशु भी है, मानव भी एवम् देवता भी। जब तक अन्दर का दानव, पशुत्व मनुष्य से अलग नहीं होता, मनुष्य उससे अपना पल्ला नहीं छुड़ाता, वह नर चोले में दैत्य बना नृशंस क्रिया-कलापों में भावनाहीन बने रहकर संलग्न रहता है। यह मनुष्य की अस्मिता ही है जो उसे मानवोचित जीव जीने के लिए पशुत्व को छोड़कर देवत्व ग्रहण करने के लिए प्रेरित करती है। किसी शायर ने कहा है कि अन्दर की पशुता यदि न होती तो मानव वस्तुतः देवता होता। उन्हीं के शब्दों में “गर कुफ्र न होता तो मैं कहता कि तुम खुदा हो”। यह बात अक्षरशः सही है।

इतिहास साक्षी है कि क्रूर कर्मों के दुष्परिणाम कालान्तर में सभी को भुगतने पड़े हैं, पर आश्चर्य है कि इतने उदाहरणों के बावजूद मनुष्य की आंखें खुली नहीं है, और वह सर्वनाश प्रस्तुत करने वाले तृतीय महायुद्ध परमाणु - हथियारों से लड़ने की तैयारी कर रहा है, जबकि बड़े से बड़े उलझे हुए मामले ईमानदारी अपनाकर पंच फैसले से सुलझाए जा सकते हैं। आवश्यकता इसी की है कि मनुष्य अपनी गरिमा समझे और पशुत्व से मुक्ति पाए।


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