एक ऐसे भविष्य वक्ता थे जो सब का सही भविष्य बताते थे। दो मित्र उनसे अपना भविष्य पूछने गए। एक से उन्हें कहा एक महीने बाद मृत्यु हो जायगी और दूसरे से कहा एक महीने बाद राजा बनोगे। दोनों बड़ा विश्वास लेकर घर लौट गए।
जिसे मरना था उसने अपने आप को सत्कर्मों में लगा दिया। पुण्य परमार्थ में निरत रहने लगा ताकि अगले जन्में काम आए। दूसरे ने सोचा जब कुछ ही दिन रात बनना है तो जो हाथ में है उसे मौज से क्यों न उड़ाएँ? व अहंभाव मदिरा पीने लगा।
महीना बीत गया। एक के पैर में चोट लगी और वह मरहम पट्टी से अच्छी हो गई। दूसरे का स्वर्ण मुद्राओं की थैली रास्ते पर पड़ी मिली। पर वह भी मदिरापान में खर्च हो गई। महीना बीतने पर भी वे ज्यों के त्यों थे। कारण पूछने के लिए भविष्यवक्ता के पास फिर दोनों गए।
उनने कहा- कर्म से प्रारब्ध बदल सकता है। पुण्यात्मा ने सत्कर्मरत होकर मृत्यु की विषमता को चोट के हलके रूप में बदल डाली और राज्य पाने वाले के मदिरापान ने उसे स्वर्ण मुद्राओं में घटाकर समाप्त कर लिया। भाग्य विधान है तो पर उसे कर्म द्वारा बदला भी जा सकता है।