विज्ञजनों के सत्परामर्श

March 1987

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“गलत ढंग से विचार करने वाला उसी प्रकार भटकाव में मारा-मारा फिरता है जैसा कि राजमार्ग को छोड़कर उतावली में अनदेखी पगडंडियाँ पकड़ने वाला।”

"असफलता का अर्थ है—अभीष्ट कार्य के लिए जितना श्रम और मनोयोग लगाना चाहिए था, उसमें कटौती होना। यदि गिनना भूल जाएँ तो दुबारा गिनने लगें। गलती प्रतीत होने पर भूल-सुधार का दण्ड सहना पड़े तो कुछ हर्ज नहीं।”

"किसी का मूल्यांकन करते समय अपनी सीमित जानकारी को ही आधार मत मानों। ठहरो और वास्तविकता का पता लगाओ, ताकि गलत निर्णय के कारण दूसरे के साथ अन्याय न हो और अपने को भूल के लिए पछताना न पड़े।”

“विरोधियों से झगड़ो मत। उन्हें तथ्य समझाओ और वस्तुस्थिति से अवगत कराओ। दूसरे की कठिनाई को कठिनाई समझो और नीति का रास्ता अपनाओ। अधिकाश झंझट गलतफहमी के कारण होते हैं, जिसे समझा और समझाया जा सकता है।”

“घमंड मत करो। वह बहुत बोझिल होता है। उसका रख-रखाव करने के लिए बहुत समय लगता और खर्च पड़ता है। प्रसन्न रहना उससे कहीं अच्छा हैं। घमंडी की तुलना में लोग हँसमुख से अधिक प्रभावित होते हैं। नम्रतायुक्त प्रसन्नता बड़प्पन की निशानी है और शेखीखोरी ओछेपन की।”

“सदा मतलब निकालने की ही फिराक में मत रहो। यह भी देखो कि स्वार्थ के लिए किसी के साथ अनर्थकारी बर्ताव तो नहीं हो रहा है।”

"सहायता तो खुशामदी भी प्राप्त कर लेते हैं। पर वे किसी को संतुष्ट एवं प्रभावित नहीं कर सकते। मात्र सच्चाई में ही वह शक्ति है जो विरोधी को भी शांत कर सकती है।”

"तुच्छजन मात्र अपनी इच्छा की पूर्ति चाहते हैं। भले ही वह अनुचित हो और उसके लिए अनुचित उपाय अपनाए गए हों। नीच न बनो। अपनी इच्छाओं को इतना महत्त्व न दो कि स्वार्थ पूर्ति के लिए अपना ईमान बेचना पड़े।”

“विचारशील अपने दोष देखते और उन्हें सुधारते हैं। मात्र दुराग्रही ही दूसरों के दोष ढूँढ़ने और आरोप लगाने में निरत रहते हैं। अच्छा यह है कि भलों के साथ रहा जाए। उनके तौर-तरीके देखकर भलाई करना सीखा जाए।”

“सज्जनता बरतो। सभी से भला व्यवहार करो। मैत्री का स्वभाव बनाओ। किसी से द्वेष न करो। बुराई मिटाने का सही तरीका यह है कि बुराई मिटाने का सही तरीका यह है कि बुरे के प्रति घृणा न करते हुए भी बुराई के साथ असहयोग किया जाए। बुरे से भयभीत होकर डर जाना, उन्हें कुकर्म करने के लिए प्रकारान्तर से प्रोत्साहित करना ही है।"

“धन कमाया जाए, पर कमाई का रास्ता सही हो। बुरे उपायों से कमाया गया धन ठहरता नहीं। दुर्व्यसनों में बह जाता है और उसके लिए पतन का मार्ग प्रशस्त करता है, जिसने धन का सदुपयोग नहीं सीखा और अपव्यय में अविवेकपूर्वक खर्च कर डाला। ऐसों के हाथ पश्चाताप ही शेष रहता है।"

“चिंतित मत रहो और न खिन्नता अथवा निराशा में डूबो। चिंता का कारण समझो और वह उपाय सोचो जिससे उसकी जड़ कटे और समाधान मिले।”

"अंधविश्वाशी मत बनो। किसी कि बात इसलिए अंगीकार न करो कि वह धनी,ज्ञानी अथवा अधिकारी है। गहराई से निष्पक्षतापूर्वक सत्य की खोज करो और वही मानो जो उचित और न्याय संगत है।"


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