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Akhand Jyoti
Year 1987
Version 2
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March 1987
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सत्साहित्य सामने रखा हुआ महकता उद्यान है।
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Page Titles
मानव जीवन की विशिष्टता एवं सार्थकता
विज्ञजनों के सत्परामर्श
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आत्मा की परमात्मा से गुहार
इन्द्रिय लोलुपता (Kahani)
प्रभुदर्शन की पूर्वभूमिका
देवता और असुर (Kahani)
धर्म का मूल प्रयोजन—सत्य की शोध
पुरोहित वर्ग किसी की कृपा का मोहताज नहीं
विलाप किस बात का
मनुष्य का संकल्प बड़ा है (kahani)
जापान क्षेत्र की “जेन” साधना
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योगाभ्यास के आरम्भिक दो चरण यम-नियम
बीमारों के यहाँ (Kahani)
सोमरस पान का ज्ञान-विज्ञान
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हमारा रहस्य मय नाभि गह्वर
फ्रांस और इटली में युद्ध (Kahani)
कामुकता का आवेश उन्माद
नारी का सन्देश (Sandesh)
शोपेन हाॅवर- जर्मनी का ब्रह्मवेत्ता
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सबसे बड़ा अजूबा मनुष्य
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इच्छाशक्ति का सुनियोजन कैसे करें?
मोह का व्यापक प्रेम मे परिवर्तन (Kahani)
अध्यात्म क्षेत्र का प्रतिभा पलायन
विपत्ति और परिस्थिति (Kahani)
जागते रहो! सावधान रहो!
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भटकते न फिरें, ध्रुव के साथ जुड़ें
पैर पसारना (kahani)
जीवन का उद्गम-सविता
भक्ति से बड़ा कर्तव्य (Kahani)
स्वप्नों में दिव्य संकेतों का सम्मिश्रण
प्रत्यक्ष आवश्यकताये और जंजाल (Kahani)
मनुष्य भी ज्वालामुखी की तरह फूटता है।
परिहास के साथ शालीनता भी जरुरी (Kahani)
मनुष्य असाधारण है, अनुपम और अद्भुत भी
जो मिला है वह क्या कम है? (Kahani)
धरती का देवता....
सुसंतति के सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रयोग
कर्म से प्रारब्ध बदलो (Kahani)
झूँठे आरोपों में गिराने की सामर्थ्य नहीं
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धरती देवताओं की क्रीड़ा भूमि
मृत्यु का स्मरण (Kahani)
अग्नि मीड़े पुरोहित
हमारी अद्भुत कायिक संरचना
“हर कुफ्र न होता तो में कहता कि तुम खुदा हो”
युग परिवर्तन अब दूर नहीं
प्रज्ञा समारोहों के साथ जुड़ी हुई अमृताशन प्रक्रिया
दुराव और स्वार्थ का व्यवधान (Kahani)
अपने से अपनी बात
VigyapanSuchana
जब अभीप्सा जागे (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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