इन्द्रिय लोलुपता के वशीभूत होकर सामान्य प्राणी भी विपत्ति में फँसते हैं। फिर बढ़ी हुई लिप्सा के कारण मनुष्य का सर्वनाश हो तो आश्चर्य ही क्या?
बहेलिए की वीणा पर मुग्ध होकर कान का लोलुप हिरन मारा जाता है। गंध पर सुधि–बुधि खो बैठने वाला भौंरा कमल में बन्द होकर प्राण गंवाता है। जीभ की लोलुप मछली आटे की गोली आटे की गोली में गला फँसाती है। कामुक हाथी छद्म हथिनी के पीछे लगकर पकड़ने वालों के खड्ड में जा गिरता है और दुर्गतिग्रस्त होता हैं। आँख का असंयम बरतने वाला पतंगा दीपक पर गिर कर प्राण गंवाता हैं। आँख मूँद कर चासनी पर कूदने वाली मक्खी पर फँसाती और जान गंवाती है। जब कि किनारे बैठ कर धीरे-धीरे पेट भरने वाली चींटी पेट भी मरती है और विपत्ति में भी नहीं पड़ती।