विपत्ति और परिस्थिति (Kahani)

March 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ईश्वर ने सृष्टि संरचना के दिनों मनुष्य को अधिक उपयुक्त पाया और कृपापूर्वक अनुदान के रूप में प्रतिभा प्रदान कर दी। प्रतिभा के बल पर मनुष्य अनेक दिशाओं में उन्नति और सुख सुविधाओं से भरा पूरा जीवन बिताने लगा।

समय ने पलटा खाया। प्रतिभा के पीछे स्वार्थान्धता जुड़ गई। फलतः प्रतिभा का उपयोग एक दूसरे को चुराने और गिराने में किया जाने लगा। सृजन को जब ध्वंस में नियोजित किया गया तो विपत्तियों को उतरना स्वाभाविक था। सर्वत्र शोक संताप का वातावरण बन गया। लोग पतन पराभव के गर्त में गिरते चले गए।

समाचार सृष्टा तक पहुँचा। वे दुःखी हुए। स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने देव दूत भेजे। उनने विपत्तियों का कारण समझाया और परिस्थिति सुधारने के लिए मनः स्थिति बदलने का मार्गदर्शन करने में कुछ उठा न रखा।

लोग आदतों के इतने अभ्यस्त हो चुके थे कि बदलना तो दूर उलटे देव दूतों का उपहास उड़ाते और त्रास देने पर उतारू हो गए। विवश होकर वे वापस चले गए। दुर्गतिग्रस्त मनुष्य की दुर्गति दिन-दिन अधिक बढ़ती गई। अब की बार मनुष्यों ने स्वयं विधाता से प्रार्थना की और स्थिति का नया उपाय बताने का अनुरोध किया।

विधाता ने इस बार और भी बलिष्ठ देवदूत भेजे, पर यह शर्त सुना दी कि जो उनका सहयोग करेंगे, अपने को बदलने की बात मानेंगे उन्हीं की सहायता की जायगी। उन्हीं के दुःख दारिद्र होंगे। वही क्रम अब तक चला आ रहा है- दैवी सहायता उन्हीं को उपलब्ध होती है जो अपनी सहायता आप करते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118