परिहास के साथ शालीनता भी जरुरी (Kahani)

March 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

परिहास सुखद होता है, पर उसमें शालीनता का पुट भी रहना चाहिए। अन्यथा द्रौपदी और यादव कुल की तरह वह अनर्थकारी भी होता है।

द्रौपदी के महल में एक बार कौरव गये। वह इतना विलक्षण था कि थल में जल और जल में थल दीखे कौरव ऐसे ही भ्रम में पड़ गये और टकराने भटकने लगे। द्रौपदी ने व्यंग में कहा- “अंधों के अंधे ही होते हैं।” इसे कौरवों ने अपना अपमान माना और आगे चल कर द्रौपदी को नीचा दिखाने में कोई कमी न रहने दी।

इसी प्रकार एक कथा यादव किशोरों की है। वे शमीक ऋषि के पास गये। एक लड़के को युवती बनाया उसके पेट में लोहे का मूसला बाँधा और यह पूछने लगे कि इसका गर्भ में लड़का जन्मेगा या लड़की?

ऋषि इस परिहास पर बहुत क्रुद्ध हुए और शाप दिया। यह गर्भ होगा जो तुम सबके विनाश का कारण बनेगा। अन्त में वे सभी पारिवारिक संघर्ष के ग्रास बने और परस्पर लड़कर समाप्त हो गये।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles