पैर पसारना (kahani)

March 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अकबर के दरबार में एक पेशकार थे- बलीराम। बादशाह से अपमानित होने पर उन्होंने वैराग्य की ठानी और घर का सारा माल असबाब गरीबों को दे दिया। स्वयं जमुना की रेती में लम्बे पैर पसार कर सोने लगे।

बादशाह ने बुलाया तो वे आए नहीं। अकबर स्वयं ही उन्हें मनाने पहुँचे। कुशल पूछने के बाद अकबर ने पूछा- पैर पसारना कब से शुरू हुआ?

बलीराम ने कहा - जिस दिन से हाथ समेटे उसी दिन से पैरों का फैलना आरम्भ हो गया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles