शेख शादी मस्जिद में रोज नमाज पढ़ने जाते थे। उनके पास फटे जूते थे। एक दिन एक धनी नमाज पढ़ने आया, उसके पास सोने की करचोटी वाले जूते थे। शेख शादी ने पूछा - आप कब-कब नमाज पढ़ते हैं। तो उसने दिया- साल में एक बार।
इस पर शेख शादी दुःखी हुए और बोले हे ईश्वर! रोज नमाज पढ़ने वाले के फटे जूते और साल में जो एक बार पढ़ता है उसे सोना लगे? यह कैसा इंसाफ? वे यह सब सोच ही रहे थे कि एक बिना पैर वाला अपंग घिसटता हुआ आया और नमाज पढ़ने लगा।
शेख शादी का विचार बदल गया। उनने शिकायत के स्थान पर भगवान पर भगवान को धन्यवाद दिया और कहा-मुझे पैर मिले हुए हैं यही क्या कम है? सम्पन्न से अपनी तुलना करने पर मनुष्य दुःखी होता है किन्तु जब दुखियों से तोलता है तो प्रतीत होता है कि जो मिलता है, वह भी कम नहीं हैं।