एक पंडित जी नाव में यात्रा कर रहे थे। कि केवट से वार्तालाप करते हुए यह पूछ रहे थे, वह क्या-क्या पढ़ा है? धर्मशास्त्र, गणित, इतिहास, आयुर्वेद, दर्शन, व्याकरण आदि। केवट सभी के संबंध में अपनी अनभिज्ञता प्रकट करता। पंडित जीने झुँझला कर कहा-तब आपका जीवन व्यर्थ चला गया। केवट ने विवशता और लज्जापूर्वक सिर झुका लिया।
थोड़ी देर में आँधी आई। नाव डगमगाने लगी। मझधार का प्रवाह तेज था। डूबने के आसार बन गये। तैरना जानने वाले सभी पानी में कूद पड़े और जान बचाने के लिए तैरने का प्रयत्न करने लगे। माँझी भी लंगोट कस कर वैसा ही करने को उद्यत हुआ।
पंडित जी सकपकाये हुए एक कोने में बैठे थे। केवट ने पूछा - आपको तैरना नहीं आता है क्या? उनने अनभिज्ञतापूर्वक सिर हिला दिया। नाविक बोला - तब आपका जीवन भी व्यर्थ चला गया। प्रत्यक्ष आवश्यकताओं को छोड़कर और परोक्ष जंजाल में उलझे रहे।
पंडित जी नाव के साथ ही अथाह जल राशि में समा गये।