अकाल से पीड़ित ग्रामवासी एक युवक नेता के पास पहुँचे और बोले- “हम भूख से मरे जा रहे हैं और हमें कही अन्न ही नहीं मिल रहा।”
मुखिया ने कड़ककर पूछा- “बताओ किसने अन्न चुराकर जमा कर रखा है? - इस प्रश्न पर निगाहें तो कई उठीं पर बोल उनमें से एक भी न सका। युवक मुखिया ने अनुभव किया यह लोग नाम बताने से भयभीत हो रहे हैं।”
इस बार उसने फिर कड़क कर पूछा- ‘कोई भी क्यों न हो, डरो मत नाम बताओ? एक क्षीण आवाज आई-आपके पिताजी ने। युवक की आँखें लाल हो गई-ग्रामवासियों को लेकर पिता के गोदाम में घुस गया और पिता के देखते देखते सारा अनाज दुखियों में मुफ्त बाँट दिया।
यह युवक स्वतन्त्रता संग्राम के वीर सेनानी बंतासिंह थे जिन्होंने अँगरेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रान्ति का डंका बजाया था।