प्रार्थना और मनोकामनाओं की पूर्ति

December 1972

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कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रयत्न या प्रार्थना करने से पूर्व उनकी उपयुक्तता और वाँछनीयता की परख होनी चाहिए अन्यथा उसकी पूर्ति के लिए किया गया प्रयत्न व्यर्थ ही न जायेगा वरन् अनर्थ भी उपस्थित हो जायेगा।

कृषि कर्म अच्छा है पर बीज बोने से पहले यह देख लेना चाहिए कि यह किस अन्न का बीज है और सड़ा घुना तो नहीं है। गेहूँ की फसल उगाने वाले यदि कंटेली बो दें तो अन्न राशि मिलना तो दूर उलटे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जायेगी और उन कंटीले विष वृक्षों से केवल अहित ही सम्पन्न होगा। कृषि करना-बीज बोना-कुछ भी बोना ऐसा अन्धेर ठीक नहीं।

कामनाएं अपने मस्तिष्क की उपज और दूसरों के सिर पर चमकती लगने के कारण सभी अच्छी लगती हैं। पर वर्गीकरण करने पर बहुत सी ऐसी होती हैं जो देखने भर की ही सुन्दर लगती हैं। भीतर उनके विष ही भरा रहता है। कंटेली का फल पीला, सुनहरा और सुन्दर होता है पर उपयोग में वह घोर कड़ुई और विषैली होने से दुखदायक ही सिद्ध होती है। कामनाओं में से भी कितनी ऐसी ही ‘कंटेली’ सदृश होती हैं।

गुजारे की व्यवस्था ठीक प्रकार चल रही है पर अमीरी चाहिए दौलत का कोष मिलना चाहिए। पति-पत्नी भले चंगे मौज करते हैं। निश्चिन्त निर्द्वंद्व हँसते खेलते हैं पर बच्चे चाहिए। शत्रुओं का नाश होना चाहिए भले ही वह शत्रुता अपने ही दोष दुर्गुणों के फलस्वरूप उत्पन्न हुई हो। मुकदमे में विजय होनी चाहिए भले ही अपना पक्ष अनीति युक्त हो। परीक्षा में उच्च श्रेणी की सफलता मिलनी चाहिए भले ही पढ़ने में बिल्कुल ध्यान न दिया गया हो, पुत्र आज्ञाकारी होना चाहिए भले ही खुद उच्छृंखलता का आचरण करके उसे वैसी ही उद्दण्ड प्रेरणा देते हों, पत्नी पतिव्रता होनी चाहिए भले ही स्वयं दुराचारी हों।

कामनाएं एक पक्षीय होती हैं उनका एक पहलू ही लोग देखते हैं। यह नहीं देखते इनमें से कितनी नैतिक और कितनी उचित हैं। जिसका गुजारा ठीक चल रहा है वह अमीर बनकर ईर्ष्या, द्वेष, व्यसन अहंकार की ही वृद्धि करेगा, अमीरी असमानता जन्य अनेकों अनाचार पैदा करती है। वह होनी ही चाहिए इसकी क्या आवश्यकता है? बढ़ी हुई जनसंख्या को देखते हुए आज की स्थिति में बच्चे पैदा करना विशुद्ध समाज द्रोह है। बालकों को सुसंस्कारी बनाने की न अपनी योग्यता है न परिस्थिति। गुण्डागर्दी की सेना में कुछ और तस्करों की वृद्धि कर जाने से सिर पर पाप ही बढ़ेगा। स्वर्ग ले जाने वाले पिण्डदान की कल्पना तो मिथ्या ही सिद्ध होगी। जो धन समाज के उपयोगी कामों में लगाया जाने पर आदर्श उपस्थित कर सकता था उसे बेटे के लिए हराम की कमाई खाने के लिए छोड़ जाना किस प्रकार बुद्धिमानी है। इस युग में उस पर ईश्वर की कृपा है जिसके सन्तान नहीं। संतान है तो बेटियाँ ही हैं। इस सौभाग्य को दुर्भाग्य मान कर बेटे के लिए रट लगाने वाले और उसके लिए दुखी रहने वाले कभी यह सोचते ही नहीं कि उनकी कामना उचित है या अनुचित। कामना कैसी भी क्यों न हो उसका परिणाम कुछ भी हो-मनोकामना सिद्ध होनी चाहिए।

भगवान यदि अनैतिक कामनाएं पूरी किया करें देवता यदि अन्याय को भी बढ़ावा दिया करें आप तथा कथित भक्त की कामना पूर्ण किया करें तो फिर वे समदर्शी कैसे रह जायेंगे? फिर उन्हें पक्षपाती क्यों न कहा जायेगा? गलतियाँ अपनी नाश शत्रु का हो। चोरी डकैती खुद ने की मुकदमा देवता छुड़ा दें। सट्टे जुए में बिना कमाई का धन मिल जाय भले ही देवी दो बकरों की बलि ले ले। रिश्वत का प्रलोभन देकर देवताओं से अनैतिक काम कराने की प्रार्थना करना और फिर मनोकामना पूर्ति के लिए जाल बिछाना। इच्छा पूर्ण न हो तो देवता को गाली देना, यह आज के पूजा पाठ का स्तर रह गया है। बेईमान भक्त की मनोकामनाएं बेईमान भगवान ही पूरी कर सकता है। प्रार्थना करने से पहले भगवान से यह पूछ लेना चाहिए कि आपको हमारी ही तरह का बेईमान होना मंजूर है या नहीं। यदि न हो तो पूजा प्रार्थना के झंझट में क्यों पड़ें?

बिना परिश्रम बिना पात्रता के मनमानी उपलब्धियाँ प्राप्त करने के दाव-घात भी इसी श्रेणी में आते हैं। पढ़ने से कतराना और हनुमानजी को प्रसाद का लालच देकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के सपने देखना। यह किस प्रकार उचित है। यदि हनुमान ऐसे ही अन्धेर किया करें तो फिर कोई विद्यार्थी पढ़ने का परिश्रम क्यों करेगा? फिर प्रसाद चढ़ाने की सस्ती तरकीब ही सब क्यों नहीं अपना लेंगे। ऊँची सफलताएं प्राप्त करने के लिए जिस योग्यता का अभिवर्धन आवश्यक है फिर उसे कोई क्यों सम्पादित करेगा। फिर पुरुषार्थ और अध्यवसाय की क्या आवश्यकता रह जायेगी।

भौतिक कामनाएँ मनुष्य की योग्यता और चेष्टा से संबंधित हैं, पुरुषार्थ के मूल्य पर ही उन्हें खरीदा जा सकता है। ऐसी कामनाओं के लिए देवताओं का दरवाजा नहीं खटखटाना चाहिए।

अनैतिक पक्ष की सफलता के लिए प्रार्थना करके-भक्त को भक्ति का और भगवान का स्तर नहीं गिरना चाहिए। तृष्णाओं और वासनाओं को नियंत्रित संयमित और परिष्कृत करने की आवश्यकता है न कि उनकी पूर्ति के लिए लालायित रहकर बहुमूल्य मानव जीवन को निरर्थक क्रियाकलापों में बरबाद करने का आग्रह करने की।

मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंत्र, देवता या भगवान को विवश करना अवाँछनीय है, अर्वाचीन अथवा प्राचीन कर्मों का फल भोगने के लिए साहसपूर्वक तैयार रहना चाहिए। दुष्कर्मों के दुखद फल से छुटकारे के लिए नहीं वरन् दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृत्ति का परित्याग कर सकने के लिए साहस और पराक्रम माँगना चाहिए।

कामनाओं को औचित्य को परखने से प्रतीत होता है कि हमारी अधिकाँश कामनाएं अनैतिक, अवाँछनीय और अनावश्यक होती हैं, पुरुषार्थ और शौर्य के अभाव में हमें जो असफलताएं एवं व्यथाएं भोगनी पड़ती हैं उनसे बचने के लिए देवता का पल्ला पकड़ते हैं। देवता किसी प्रकार प्रसन्न होते हैं तो मनुष्य को श्रेय पथ पर चलने की प्रेरणा करते हैं और सदुद्देश्य पर सुदृढ़ रहने का साहस प्रदान करते हैं। दैवी सम्पदायें नहीं वरन् सत्प्रवृत्तियाँ हैं।

परिष्कृत व्यक्तित्व यदि परिष्कृत कामना करे तो उसे दैवी सहायता अवश्य प्राप्त होती है। ऐसी प्रार्थना ईश्वर सुनता है और उसे पूरी करने में भरपूर सहायता भी देता है। महामानवों ने अनेक कठिनाइयों के रहते हुए जो आश्चर्यजनक सफलताएं प्राप्त कीं, उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचे उसके पीछे दैवी सहायता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सुयोग्य और साधन सम्पन्न व्यक्ति जहाँ लौकिक प्रयोजनों में असफल होते रहते हैं और मात खाते रहते हैं वहाँ साधनहीन व्यक्तियों द्वारा उच्च उद्देश्य की दिशा में आशाजनक प्रगति कर सकना ईश्वरीय सहायता के बिना कैसे संभव हो सकता है।


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