परमात्मा पूजा का नहीं प्रेम का भूखा है।
-स्वामी दयानन्द
मनुष्य का अन्तःकरण भी ऐसा ही चेतना ध्रुव संस्थान है। उसके भीतर इच्छा शक्ति, भावना शक्ति संकल्प शक्ति, आकर्षण शक्ति, विकर्षण शक्ति जैसी अगणित ज्ञात और अविज्ञात क्षमताएं भरी पड़ी हैं, यदि उन्हें जागृत किया जा सके, उनका उपयोग करना सीखा जा सके तो इस विश्व ब्रह्माण्ड में संव्याप्त समस्त विभूतियाँ करतलगत हो सकती हैं। मानवी अन्तःकरण सौरमण्डल को कार्य करने का पथ प्रशस्त करते रहने वाले आकाश की तरह ही असीम है और उसमें जो कुछ भरा पड़ा है उसे अन्तरिक्ष आकाश से कहीं अधिक शक्तिशाली समझा जाना चाहिए। दुर्भाग्य इतना ही है कि हम अपनी करतलगत सम्पदा से अपरिचित ही रहते रहे हैं।