घना जंगल। उसके मध्य में यात्रियों के लिये एक पगडण्डी पथिक। अपने गन्तव्य पर पहुँचने के लिये लम्बे-लम्बे कदम रखता हुआ बढ़ा जा रहा था। जंगली हाथी ने राह रोकी। पथिक पर झपटा। उसे जान प्यारी थी बचाव के लिये भागा और एक कुँए में जा गिरा।
कुँए के अन्दर की दीवार से निकला हुआ एक पीपल का वृक्ष। पथिक के हाथ में वृक्ष की एक शाखा आ गई। चलो कैसे भी जान तो बची यहाँ हाथी न आ पायेगा। अब नीचे की ओर दृष्टि गई तो काल के रूप में साक्षात् मगर ही मुँह खोले ऊपर से गिरने वाले पथिक की बाट जोह रहा था। डर के मारे दृष्टि नीचे से ऊपर करली।
ऊपर मधुमक्खी का छत्ता। छत्ते से टपकता हुआ बूँद-बूँद रस। पथिक को आनन्द आने लगा। नीचे मगर है-बिल्कुल भूल गया। कुछ समय बाद उसका ध्यान गया कि जिस डाल को वह पकड़े हुये है उसे दो चूहे कुतर रहे हैं एक का रंग काला है और दूसरे का सफेद।
यह सब स्थितियाँ जीवन के स्वरूप को प्रकट करती हैं। वह हाथी काल था। मगर मृत्यु। और टपकता हुआ मधु जीवन रस। दोनों चूहे दिन रात के प्रतीक थे, जो उस वृक्ष को काट रहे थे। इतने पर भी अज्ञानी पथिक भविष्य के अन्धकार से बचने का उपाय न सोचकर मात्र मधु बूँदों में ही व्यस्त और मस्त हो रहा था।