Quotation

December 1972

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जो शूरवीर समराँगण में युद्ध करते करते शरीर त्याग करते हैं अथवा जो दानवीर समाज और राष्ट्र के हितकारी कार्यों के लिए अपनी सम्पत्ति लोक हित के लिए देकर शरीर त्याग करते हैं, वे समान रूप से सद्गति को प्राप्त होते हैं।

-अथर्ववेद

अविकसित युग में कोई बुरा मनुष्य सीमित बुराई ही कर सकता था। पर अब वह सुविधा साधन उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से यदि वह चाहे तो असीम बुराई प्रस्तुत कर सकता है। यही बात अच्छाई के सम्बन्ध में भी है। साधन हीन अविकसित स्थिति के हमारे पूर्वज अपनी श्रेष्ठता को भी सीमित मात्रा में सीमित क्षेत्र में फैला सकते थे। पर अब वह अवसर है जबकि कोई साधन सम्पन्न श्रेष्ठ व्यक्ति श्रेष्ठता को प्रचुर मात्रा में। असीम क्षेत्र में विस्तृत कर सकता है।

अनाचार पूर्ण व्यवस्थायें और संकीर्णता पूर्ण मान्यतायें गये गुजरे जमाने की चीज हो गई। तब दुनिया बिखरी हुई थी और मनुष्य के साधन सीमित थे। उस समय के अवाँछनीय कार्य भी सीमित हानि पहुँचाते थे और अनुचित दृष्टिकोण की क्षति भी सीमित थी पर अब विज्ञान ने दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। संचार साधनों ने दूरी समाप्त कर दी और दुनिया के देश एक ही नगर के गली मुहल्लों की तरह बन गये हैं। जाति, धर्म, रंग, सम्प्रदाय के आधार पर वर्गीय स्वार्थों को अलग रखकर सोचना आज के युग में सम्भव नहीं। हमें व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। विश्व को एक इकाई मानकर चलना होगा और जहाँ भी जो भी अवाँछनीयता जम गई है उसे उखाड़कर ऐसा प्रचलन करना होगा जिससे उपलब्धियों के सदुपयोग पर पूरा जोर दिया जाय।

सामर्थ्य की अधिकता पर प्रसन्न होने की कोई बात नहीं। यदि वह अनीति के अवाँछनीय मार्ग पर चलेगी तो शक्ति कितनी ही बढ़ी-चढ़ी क्यों न हो प्रकृति के नियमों में बाधित होगी और स्वयं ही नष्ट हो जायेगी। सामर्थ्यता और सम्पदा बढ़ाने के लिये प्रयत्नशील रहा जाय पर साथ ही सतर्कतापूर्वक यह भी देखा जाय कि उस उपार्जन का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है। इस दृष्टि से जब विचार करना आरम्भ किया जायेगा तो प्रतीत होगा परिवर्तन का बहुत बड़ा काम हाथ में लिया जाना है। साधनों के दुरुपयोग की वर्तमान परिपाटी को आमूलचूल परिवर्तन करने से ही काम चलेगा। अवाँछनीय दुरुपयोग तो शक्ति और शक्तिवान दोनों को ही विनष्ट करते हैं।

किसी जमाने में विशालकाय डायनोसौर जीवों ने अपनी हिंस्र वृत्ति बहुत अधिक विकसित करली थी। इनकी तीव्र इच्छा शक्ति के कारण बहुत से सींग उत्पन्न हो गये थे। अपने पराक्रम से भी सभी जीवों को आतंकित करते थे और किसी का भी अस्तित्व मिटा देते थे। तब एक प्रकार से उन्हीं का धरती पर राज था। पर प्रकृति की व्यवस्था देखिए। उसे यह अनाचार पसन्द नहीं आया। जीव-जन्तु तो उन आततायियों का मुकाबला न कर सके पर प्रकृति ने उन्हीं का अस्तित्व दुनिया में से मिटा दिया। अब डायनोसौर मात्र पुरातत्व वेत्ताओं की पुस्तक पृष्ठों तक सीमित हैं।

हम डायनोसौर जीवों के उदाहरण न बनें। शक्ति का दुरुपयोग ने करें वरन् सृजनात्मक प्रयोजनों में लगाने का साहसिक प्रयास आरम्भ करें यही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles