मानवी सत्ता ब्रह्माण्ड सत्ता की प्रतिकृति है।

December 1972

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एक परमाणु सौर मण्डल की सूक्ष्म अनुकृति है। उसका मध्य भाग-केन्द्रक-हमारे सूर्य-सौरमण्डल का प्रतिनिधित्व करता है। परमाणु के इस केन्द्रक सूर्य के चारों ओर इलेक्ट्रान नामक परमाणु उसी तरह घूमते रहते हैँ जिस तरह कि सौरमण्डल के ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। सौरमण्डल के घेरे में जिस प्रकार बहुत बड़ा आकाश रहता है, उसी तरह परमाणु मण्डल के बीच भी पोल रहती है। विभिन्न सौर मण्डलों की स्थिती में एक दूसरे से पर्याप्त भिन्नता होती है, इसी प्रकार परमाणुओं वर्गों के भीतरी भाग में भारी भिन्नता रहती है, यद्यपि वे बाहर से एक जैसे दीखते हैं। यूरेनियायस्क के एक परमाणु 92 इलेक्ट्रान होते हैं। कार्बन में उनकी संख्या केवल छह होती है।

प्रत्येक मनुष्य एक ब्रह्माण्ड है। उसका आत्म सूर्य है जिसके इर्द-गिर्द ग्रह परमाणु भ्रमण करते रहते हैं। मानवी काया में भ्रमण करने वाले अणु जीवाणु एक विशेष प्रकार की विद्युत उत्पन्न करते हैं। उसी विद्युत से प्रभावित होकर मस्तिष्क से लेकर इन्द्रिय तथा अन्य अवयव अपना काम करते हैं। जड़ में चेतना उत्पन्न होने का माध्यम यही है। साधारणतया अणुओं में हलचल भर रहती है। चिन्तन तथा अनुभूति उनमें नहीं है। पर मानवी विद्युत जिसे ‘प्राण’ कहा जाता है, जड़ अणुओं के समूह में चेतना, विचारणा और अनुभूति उत्पन्न कर देती है और सजीव जीवन आरम्भ कर देती है। निर्जीव, अनुभूति रहित जीवन तो पत्थर चट्टानों में भी रहता है।

पृथ्वी के ध्रुवों के आस-पास चुम्बकीय आँधियाँ चलती रहती हैं। अस्थिर रंग-बिरंगा प्रकाश- आरोरा वेरियस छाया रहता है। यही ध्रुव स्थान अन्य ग्रहों के विकरण प्रकाश एवं प्रभाव को पृथ्वी पर लाता है और यहाँ की विशेषताओं को अन्य लोकों तक ले जाता है। इस ध्रुवीय क्षेत्र को ब्रह्माण्ड का संपर्क कह सकते हैं। इन ध्रुव केन्द्रों के माध्यम से चलने वाले अन्तर्ग्रहीय प्रत्यावर्तन के बलबूते ही धरती अपनी वर्तमान परिस्थितियों में बनी हुई है। इतना ही नहीं-अन्य ग्रहों की वर्तमान परिस्थितियों में भी इस भू ध्रुवों में चलने वाले अनवरत प्रत्यावर्तन का महान योगदान है। यदि किसी कारण यह आदान-प्रदान बन्द हो जाय तो पृथ्वी की स्थिति में इतना विषम परिवर्तन होगा कि तब यहाँ जीवन का अस्तित्व भी संदिग्ध हो जायेगा। साथ ही ग्रहों की कक्षाओं और स्थितियों में परिवर्तन होने से सौरमण्डल की प्रस्तुत गतिविधियों में भारी उलट-पुलट हो जायेगी। भू ध्रुवों के माध्यम से होने वाला शक्ति प्रत्यावर्तन ही अपने सौरमण्डल की वर्तमान स्थिति बनाए हुए है। तनिक से क्षेत्र में होने वाला तनिक सा क्रियाकलाप पृथ्वी सौरमण्डल और उस पर सौरमण्डल के महा सूर्य के प्रदक्षिणा क्रम में कितना भारी योगदान कर रहा है, इस तथ्य पर जितनी गहराई से विचार किया जाय उतना ही अधिक मार्मिक रहस्योद्घाटन होता चला जाता है।


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