ज्ञान और धन (Kahani)

December 1972

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ज्ञान और धन दोनों लड़के एक दिन अपने को बड़ा सिद्ध करते हुए झगड़ पड़े और फैसला कराने के लिए आत्मा के पास पहुँचे।

आत्मा ने दोनों को दुलारा और कहा अपने-अपने स्थान पर दोनों ही महत्वपूर्ण हो। पर हो अपूर्ण। विवेक द्वारा तुममें से जिसका भी उपयोग हो जाय वही बड़ा है और जो भी दुरुपयोग के पल्ले बँध जायेगा उसकी गरिमा ही नहीं गिरेगी, दुर्गति भी होगी। अपनी अपूर्णता समझकर दोनों ही शिर झुकाये वापिस लौट गये।

‘हाथों में तेल लगाकर कटहल काटा जाता है जिससे हाथ में दूध न चिपकने पाये। विवेक रूपी तेल को हृदय मन पर पोतकर संसार रूपी कटहल का प्रयोग करना जिसे आता है वह ज्ञानवान है।’

‘किसी धनी के घर काम करने वाली नौकरानी घर का सब काम-अपने काम की तरह मन लगाकर करती है। मालिक के लड़के को भैया-भैया भी कहती है पर मन में जानती है कि सब कुछ मालिक का है, वह तो नौकरानी है। इसी प्रकार ज्ञानवान यह समझता रहता है, यह संसार, परिवार, वैभव जो अपने आस-पास है, वह तो ईश्वर का है, खुद तो सेवक मात्र है’।


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