असुरता अपनाने वाले नृशंस नर कीटक

December 1972

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मनुष्य में देवता भी रहता है और असुर भी। उसकी प्रकृति में दोनों ही तत्व मौजूद हैं। जिस पक्ष को समर्थन, अवसर और पोषण मिलता है वही सुदृढ़ होता चला जाता है। सज्जनों की संगति, सद्विचारों का अवगाहन, सद्भावनाओं का अभ्यास मनुष्य को देवता बनाता है। सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने से, सत्कर्म करने से उसकी और भी पुष्टि होती जाती है और व्यक्ति नर से नारायण बनता है।

इसके विपरीत यदि वह दुष्ट संगति, निकृष्ट साहित्य, आसुरी क्रिया-कलाप और पाप प्रवृत्तियों में लिप्त रहे तो धीरे-धीरे निकृष्ट से निकृष्टतम बनता चला जाता है। पशु से भी आगे बढ़कर पिशाच का रूप धारण करता है और जघन्य कृत्य करके ही उसके भीतर बैठा हुआ दानव मोद मनाता है। ऐसे कुकृत्य जिन्हें सुनकर भी एक सहृदय व्यक्ति काँप उठे कुछ व्यक्तियों को बहुत भले लगते हैं और वे उस नृशंसता में ही अपने अहंकार की पूर्ति समझते हैं।

हिटलर ने एक ऐसा ही नर पिशाच पाल रखा था- नाम था उसका आइख मैन। उसने निरपराध यहूदियों को लाखों की संख्या में मौत के घाट इसलिये उतारा कि हिटलर को उस जाति के कुछ लोगों का व्यवहार बुरा लगा इसलिये उसने सारी यहूदी जाति की वंशनाश करने की बात ठानी और धरती को खून से रंग दिया।

अभी अभी बंगलादेश में पाकिस्तानी बंगालियों ने 30 लाख बंगालियों का इस तरह कत्ल किया जैसे किसान घास चारे की कुट्टी कूटता है। दया और मनुष्यता से अपरिचित इन बधिकों को किन शब्दों से अलंकृत किया जाय? ऐसे ही नृशंस असुर कृत्य इतिहास में पहले भी दृष्टिगोचर होते रहे हैं और मनुष्यता उन पिशाचों से पहले भी कलंकित होती रही है।

21 अक्टूबर सन् 1941 का दिन यूगोस्लाविया की जनता के लिए सबसे नृशंस दिन है। उस दिन सात हजार निरपराध नागरिकों और स्कूलों में पढ़ रहे बालकों को एक साथ मौत के घाट इस अपराध में उतारा था कि वे अपने देश को प्यार क्यों करते हैं, आक्रमणकारी नाजियों की सहायता क्यों नहीं करते।

29 नवम्बर 43 को नये यूगोस्लाविया की नींव पड़ी। उस दिन इस देश के निवासियों ने नाजियों के पंजे से मुक्ति पाकर अपने को स्वतन्त्र घोषित किया। क्रागुजेवर में शहीदों का समाधि स्थल बना है जहाँ हर वर्ष राष्ट्रीय दिवस पर वहाँ की जनता अपने शहीदों को भाव भरे अश्रुओं के साथ श्रद्धाँजलि अर्पित करती है।

वेनेडिक्ट कार्पजे सन् 1620 से 1666 तक लिपिजिंग (जर्मनी) के सेशन कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश रहा। वह बड़ी कठोर और क्रूर प्रकृति का था। छोटे से जुआ, उठाईगीरी, जादू-टोना जैसे अपराधों में भी वह मृत्यु दण्ड ही देता था। मानो इससे हलकी सजा की बात उसने पढ़ी ही न हो। उसने अपने 46 वर्ष के लम्बे कार्य काल में 30 हजार पुरुषों और 20 हजार स्त्रियों को फाँसी के तख्ते पर चढ़वाया। स्त्रियों में से तो अधिकाँश जादू-टोना करने के सन्देह में पकड़ी गई थीं।

कार्पजे फाँसी लगने का दृश्य देखने में बहुत रस लेता था और यह व्यवस्था देखने खुद जाता था कि मृतकों का माँस खाने के लिये रखे गये शिकारी कुत्ते तथा दूसरे जानवर यथासमय पहुँचे या नहीं। औसतन प्रतिदिन 5 व्यक्तियों को उसने फाँसी पर चढ़वाया। दया करना तो उसने सीखा ही नहीं था, उसकी कुरुचि ने असंख्य निर्दोषों को करुण विलाप करते हुए अकारण मृत्यु के मुख में धकेला।

आश्चर्य यह था कि यह निष्ठुर न्यायाध्यक्ष-नियमित रूप से गिरजाघर जाता था। प्रार्थना करता था। बाइबिल पढ़ता था और अपने को बड़े गर्व से ‘धार्मिक’ कहता था।

भारत ने कत्लेआम के हृदय विदारक दृश्य खून के आँसू भरी आँखों से शताब्दियों तक देखे हैं। जब आक्रमणकारी नगरों को एक सिरे से दूसरे सिरे तक रक्त रंजित कर देते थे। स्त्री, बच्चे तक उन नृशंसों द्वारा हाथ से गाजर मूली की तरह काट दिये जाते थे। चीनी चंगेजखाँ के बारे में दुनिया जानती है। चीन की दीवार और मिश्र के पिरामिडों में कितने श्रमिकों की अस्थियाँ और रक्तधारायें पिसी हैं यह एक करुण कहानी है। नादिरशाह और औरंगजेब को सहज ही इतिहास क्षमा नहीं करेगा।

व्यक्तिगत जीवन में भी यह नृशंसता समय-समय पर घुलती रहती है। मध्य प्रदेश के डाकुओं के कुकृत्य ऐसे ही हैं जिनसे उस प्रान्त की गरिमा का मस्तक लज्जा से नीचा झुका है। कानपुर का कनपटी मार बाबा इसी में आनन्द लेता था कि सड़क पर सोते हुए मजूर इस तरह उसके हथौड़े के चोट से तिलमिलाकर मरा करते थे। इस प्रकार कनपटी तोड़कर उसने सैकड़ों हत्यायें की थी। मनुष्यों और पशुओं पर समान रूप से आजीवन छुरी चलाने का व्यवसाय करने वालों की इस दुनिया में कमी नहीं है।

ऐसे लोग मरने के बाद भी प्रायः उस प्रकृति के बने रहते हैं और जिस प्रकार जीवनकाल में दुष्ट आचरण करते रहे वैसे ही प्रेत-पिशाच बनकर, मरने के बाद भी लोगों को सताते हैं।

इटली का तानाशाह मुसोलिनी कम्युनिस्ट क्रान्ति के उपरान्त अपनी जान बचाकर भागा। वह स्विट्जरलैंड की तरफ अपनी प्रेयसी क्लारा पैट्सी के साथ एक ट्रक में बैठकर गुप्त रूप से जा रहा था। अरबों रुपये की बहुमूल्य सम्पत्ति सोने की छड़ी-हीरे, जवाहरातों, पोण्ड, पेन्स और डॉलरों के रूप में उसके पास थी, पर उसका यह पलायन सफल नहीं हुआ, रास्ते में ही वह पकड़ा गया। दूसरे दिन कम्युनिस्टों ने उन दोनों को गोली से उड़ा दिया और उसकी सारी सम्पत्ति अपने कब्जे में ले ली। दोनों लाशों का सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया।

इसके बाद कहते हैं कि मुसोलिनी ने भयंकर प्रेत-पिशाच का रूप धारण कर लिया। वह अपने खजाने का लाभ किसी और को नहीं लेने देना चाहता था, खुद तो अशरीरी होने से उसका लाभ उठा ही क्या सकता था। कहा जाता है कि उसी ने प्रेत रूप में खुद खजाना छिपाया और खुद ही रखवाली की। जिनने उसका पता लगाने की कोशिश की उनके प्राण लेकर छोड़े, इतना ही नहीं जिनके प्रति उसके मन में प्रतिहिंसा की आग धधक रही थी, उन्हें भी उसने मारकर ही चैन लिया।

आश्चर्य यह हुआ कि वह विपुल सम्पदा रहस्यमय ढंग से कहीं गायब हो गई। गुप्तचर विभाग की सारी शक्ति उस धन को तलाश करने पर केन्द्रित कर दी गई। इसी बीच एक घटना और घटित हो गई कि गुप्तचर विभाग की जिन दो सुन्दरियों ने मुसोलिनो को पकड़वाने में सहायता की थी वे मरी पाई गई।

इसी प्रकार जिन लोगों को खजाने के बारे में कुछ जानकारी हो सकती थी ऐसे 75 व्यक्ति एक एक करके कुछ ही दिनों के भीतर मृत्यु के मुख में चले गये। जिस ट्रक में मुसोलिनी भाग रहा था उसका ड्राइवर गौरेवी की लाश क्षत विक्षत स्थिति में एक सड़क पर पड़ी पाई गई, उसके पास मुसोलिनी का फोटो मौजूद है।

खजाने से भी अधिक रहस्यमय यह था कि उस प्रसंग से सम्बन्ध रखने वाले सभी व्यक्ति एक-एक करके मरते चले जा रहे थे। सन्देह यह किया जा रहा था कि कोई संगठित गिरोह यह कार्य कर रहा होगा। पर यह बात इसलिये सहीं नहीं बैठ रही थी कि मरने वाले एकाध दिन पूर्व ही बेतरह आतंकित होते थे और मुसोलिनी की आत्मा द्वारा उन्हें चुनौती, चेतावनी दिये जाने की बात कहते थे। खोज-बीन में संलग्न अधिकारी गोना भी उस खजाने वाली झील के पास मरा पाया गया। दूसरे अधिकारी मोस्कोवी की लाश उसके स्नानागार में ही मिली जिसका सिर गायब था। लाश के पास ही एक पर्चा मिला जिस पर लिखा था- ‘मुसोलिनी का शरीर मर गया पर उसकी आत्मा प्रतिशोध लेने के लिये मौजूद है।’ गुप्तचर विभाग यह सोचता था शायद मुसोलिनी के साथी यह बदला लेने के लिए ऐसा कर रहे होंगे पर आश्चर्य यह था कि मुसोलिनी के दाँये हाथ समझे जाने वाले व्यक्ति भी इन्हीं मृतकों की सूची में शामिल थे। उसके विश्वस्त समझे जाने वाले साथी मेरिया की भी यही दुर्गति हुई। अन्धाधुन्ध कम्युनिस्टों से लेकर मुसोलिनी समर्थकों के बीच बिना भेद-भाव किये यह हत्या काण्ड आखिर किस उद्देश्य के लिये चल रहा है, उसे कौन चला रहा है उस रहस्य पर से पर्दा उठाये नहीं रहा था।

मिलान पत्र के सम्पादक ने एक सूचना छापी कि वह खजाने के बारे में कुछ जानकारी देगा। दूसरे ही दिन उसके सारे सम्बन्धित कागजात चोरी हो गये और वह मरा पाया गया। सर्वत्र आतंक छाया हुआ था और कोई गुपचुप भी उस खजाने के बारे में चर्चा करने की हिम्मत न करता था क्योंकि लोगों के मन पर यह आतंक जम गया था कि मुसोलिनी की आत्मा ने खजाना स्वयं कहीं छिपा लिया है और वह उसे छोड़ना नहीं चाहती। जो उसे तलाश करने में लगे हैं या जिन्हें उसकी गतिविधियों का थोड़ा भी पूर्वाभास है उन सबको वही आत्मा चुन-चुनकर समाप्त कर रही है।

इस कार्य के लिये अतिरिक्त रूप से नियुक्त वरिष्ठ खुफिया पुलिस अधिकारी बूबर और स्मिथ नियुक्त किये गये। उनने खजाने का पता लगाने का बीड़ा उठाया। यह स्पष्ट था कि वह धन कोमो झील के आस-पास ही होना चाहिए क्योंकि वहीं मुसोलिनी पकड़ा गया था। पकड़े जाते समय उसके पास वह खजाना था। गायब तो वह इसके बाद ही हुआ। इसलिये उसका वहीं कहीं छिपा होना सम्भव है। कम्युनिस्टों ने भी उसे वहीं कब्जे में ले लिया था और एक के बाद एक उनके बड़े अफसर भी जल्दी ही एकत्रित हो गये थे। इतने समूह द्वारा चुरा लिये जाने की बात भी सम्भव नहीं थी। फिर वे पकड़ने वाले कम्युनिस्ट भी तो उसी कुचक्र में मर रहे थे।

अपने खोज कार्य में बूबर और स्मिथ अपने दल सहित कोमो झील के समीप डेरा डाले पड़े थे। अचानक एक रात उनने मुसोलिनी को सामने खड़ा देखा। उसका पीछा करने के लिए वे दौड़े पर तब तक वह गायब हो चुका था, हाँ उसके पैरों के ताजा निशान ज्यों के ज्यों धूलि पर अंकित थे। गुप्तचर विभाग ने प्रमाणित किया वे निशान सचमुच मुसोलिनी के पद चिह्नों से पूरी तरह मिलते हुए हैं। वे दोनों अधिकारी दूसरे दिन से गायब हो गये और फिर उनका कहीं पता न चला।

इटली के मिनिस्टर की पत्नी मेरिया मतंक के कब्जे में भी मुसोलिनी का कुछ धन था। वह उसे लेकर स्विट्जरलैंड भागने के प्रयत्न कर रही थी कि चुंगी चौकी के पास अज्ञात स्थान से गोली चली, अधिकारी मारा गया और मेरिया गायब हो गई।

खजाने की बात तो पीछे रह गई, इन सनसनीखेज हत्याओं ने एक नई हलचल मचा दी। सरकार ने हत्याओं की खोज के लिए एक कमेटी बिठाई। इसके अध्यक्ष बनाये गये प्रधान जनरल लोइन जिंगेल। उनने प्रारम्भिक खोज के लिए जितने कागजात इकट्ठे किये थे एक दिन देखते देखते उनकी मेज से वे सभी गायब हो गये। कमेटी के एक सदस्य ऐजिली की मृत्यु हो गई। उसे आत्म हत्या या हत्या का केस बताया गया। इन परिस्थितियों में जाँच कार्य आगे चल सकना सम्भव न हो सका और खजाने की तथा उसी के सिलसिले में चल रही हत्याओं की खोज का कार्य बन्द कर देना पड़ा।

मनुष्य के भीतर अमृत भी है और विष भी। देवता भी है और असुर भी। वह स्वेच्छानुसार दोनों में से किसी की परिपुष्टि और किसी को भी तिरस्कृत कर सकता है। जिन्होंने देवता को सींचा वे स्वयं सन्तुष्ट रहे और संसार के लिये सुख शान्ति का पथ प्रशस्त किया। इसके विपरीत जिन्होंने असुरता पकड़ी और नृशंस गतिविधियाँ अपनाई, जाना तो उन्हें भी पड़ा पर अपने सामने और पीछे वे केवल एक ऐसी दुखद स्मृतियाँ छोड़ गये हैं जिन्हें सदा कोसा और धिक्कारा ही जाता रहेगा।


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