गाँव में गौतम बुद्ध का दूसरी बार आगमन हो रहा था। राजा और धनवान व्यक्ति उनके स्वागत की तैयारी में लगे थे। पर छोटे तबके के व्यक्तियों को अपने गोरख बन्धे से ही समय नहीं मिल पाता जो ऐसे कार्यक्रमों में भाग ले सकें।
उसी गाँव में एक मोची रहता था, दिन भर मेहनत मजदूरी करता, शाम पड़े घर लौटकर आता, खाना खा पीकर थोड़ी देर बच्चों के साथ मनोरंजन करता और थका माँदा गहरी नींद में सो जाता। उसे पता ही नहीं चलता कि गाँव में कब और कौन सी गतिविधि होने वाली है।
एक दिन वह सुबह उठा। घर के पीछे के छोटे से गन्दे तालाब में उसे कमल का फूल खिला दिखाई दिया। बे मौसम के उस फूल ने मोची का ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लिया। वह घुटनों तक के गन्दे पानी में घुसकर उस फूल को तोड़ लाया। सोचा इसका रुपया दो रुपया मिल जायेगा तो घर का काम चलेगा। फूल लेकर वह शहर की ओर दौड़ा।
रास्ते में नगर सेठ अपने रथ पर बैठे आ रहे थे उन्होंने मोची को फूल ले जाते देखा तो उसे रोककर सारथी से कहा इसे पाँच रुपये निकाल कर दे दो। आज नगर में बुद्ध का आगमन है उनके चरणों में अर्पित करने के काम आ जायेगा यह फूल। मोची भौंचक्का हो गया सोचने लगा रुपये दो रुपये की चीज के यह तो पाँच रुपये दे रहा है। सौदा निबट भी नहीं पाया था कि उसी मार्ग पर आते ही अश्वारोही राजमन्त्री ने कहा ‘इस फूल का सौदा हो गया। तुम बेचना मत। जितना पैसा यह धनी दे रहा होगा उसके पाँच गुने मैं दूँगा।’ एकदम 5 से 25 रुपये हो गये। जरूर इस फूल में कुछ कमाल है, तभी एक दम पाँच गुनी कीमत बढ़ रही है।
तभी राजा की सवारी उसी मार्ग से निकलते हुए उसी विवाद स्थल पर आ रुकी। राजा ने रथ में से झाँककर कहा ‘इस फूल को बेचने की आवश्यकता नहीं है। मैं राज्य कोष से मुँह माँगा दाम दूँगा। तुझे अब चमड़े के धन्धे से भी मुक्ति मिल जायेगी। तेरे परिवार की स्थिति सुधर जायेगी। मेहनत, मजदूरी के चक्कर में न पड़ना होगा। पूरा परिवार आसानी से खुशी खुशी अपने दिन व्यतीत कर सकेगा।’
नगण्य से फूल की कीमत हजारों रुपये हो गई। मोची चक्कर में पड़ गया। उसकी आंखें राजा की ओर फटी सी रह गई। ऐसा इस फूल में क्या हीरे, पन्ने, जड़े हुये हैं जो इसकी कीमत हजारों रुपये हो गई। आखिर बात क्या है? सम्राट! यह मोल भाव इतना बढ़-चढ़कर क्यों हो रहा है।
‘तू बड़ा भोला है। तुझे शायद पता नहीं कि अपने गाँव में भगवान बुद्ध का शुभागमन होने वाला है। हमें भी उसके स्वागत के लिए जाना है। बेमौसम का यह फूल उनके चरणों में चढ़ायेंगे तो उन्हें भी आश्चर्य होगा कि यह कहाँ से आ गया और हमें भी अद्भुत वस्तु चढ़ाने में गौरव का अनुभव होगा।’
नगर सेठ ने राजा की बात सुनकर मोची से कहा ‘भैया! यह न होगा यह फूल मैंने पहले देखा था। मोल भाव पहले मैं कर रहा था। अतः इस वस्तु पर पहला दावा मेरा है, नियमानुसार मुझे ही मिलना चाहिए।’
मोची ने कहा अच्छा! यह बात है तो आप सभी लोग मुझे क्षमा कीजिए। जब भगवान के चरण अपने ही गाँव को पवित्र करने वाले हैं तो मैं ही उनके चरणों में यह पुष्प चढ़ा दूँगा। मैं फूल बेचना नहीं चाहता। इसकी उपयोगिता मुझे आप सबके द्वारा मालूम पड़ गई है।
शाम को व्यक्तिगत चर्चा के समय बुद्ध को नगर सेठ, मन्त्री तथा राजा ने दिन में घटी वह घटना सुनाई। ‘एक निर्धन मोची, जिसे दो समय भरपेट खाने को भोजन नहीं मिलता, लाखों रुपये पर ठोकर मारकर फूल बेचने से इन्कार कर देता है।’
बुद्ध को सारी घटना समझने में देर न लगी। तब तक वह मोची भी दर्शनार्थियों की भीड़ में दिखाई दिया। आगे बढ़कर उसने पुष्प चढ़ाया, चरणों में माथा झुकाकर हाथ जोड़े दूर एक ओर खड़ा हो गया।
बुद्ध ने कहा ‘आज इस फूल के तेरे पास कई ग्राहक थे और मुँह माँगा दाम देने को तैयार थे। फिर तो यह फूल बेच देना चाहिए था।’
‘भगवान्! संसार में धन सम्पत्ति ही सब कुछ नहीं है। इससे भी बढ़कर कुछ और है जो आपके दर्शन तथा सत्संग से अभी मिल गया। यह लाभ सम्पत्ति के द्वारा तो प्राप्त नहीं किया जा सकता।’
बुद्ध ने सम्बोधन करते हुए कहा ‘भिक्षुओं! देखो इस साधारण से चमार को। जिसके पास सुबह खाने को जुट जाये तो शाम को खाना मिल सकेगा इसका भी भरोसा नहीं रहता। उस व्यक्ति में परमात्मा के प्रकाश की किरणें कितना परिवर्तन कर सकती हैं। कितना प्रेम और श्रद्धा उत्पन्न हो सकती है। मैं तो कितने ही वर्षों से गाँव-गाँव, नगर-नगर विहार कर रहा हूँ पर इस जैसा प्रेमी और श्रद्धालु व्यक्ति अभी तक नहीं मिल सका। कौन व्यक्ति छोटा है और कौन बड़ा? इसका निर्णय करना भी आसान कार्य नहीं। बाहर से देखने में सभी बीज एक से लगते हैं पर कौन सा बीज बड़ा फल देगा, फूल देगा? इसे कोई नहीं जानता सिवाय ईश्वर के।’