खुद को मिटाना जिन्दगी है!
दर्द का पीकर हलाहल , मुस्कराना जिन्दगी है।
बच सके कोई अगर-तो चोट खाना जिन्दगी है॥
है बड़ा उपकार- आशा के सुनहरे कण लुटाना।
औ किसी की पीर में हँसते हुए हिस्सा बँटाना ॥
जुड़ सके कोई हृदय, तो टूट जाना जिन्दगी है।
बच सके कोई अगर- तो चोट खाना जिन्दगी है॥
है बड़ा उपहार आस्था का- करुणा विक्षुब्ध मन को।
प्यार की विश्वास की है भेंट, सर्वोत्तम- स्वजन को॥
मुस्कुराये मीत- तो आँसू बहाना जिन्दगी है।
बच सके कोई अगर- तो चोट खाना जिन्दगी है॥
है सफल जीवन उसी का, जो पराये हित जिया है।
है अमर वह व्यक्ति- जिसने विश्वहित का व्रत लिया है।
बच सके नौका अगर- तो डूब जाना जिन्दगी है।
बच सके कोई अगर- तो चोट खाना जिन्दगी है॥
है ऋणी इतिहास उनका- रक्त जो निजदान करते।
बाँटते अमृत जगत को- खुद हलाहल पान करते ॥
विश्व के निर्माण में, खुद को मिटाना जिन्दगी है।
बच सके कोई अगर- तो चोट खाना जिन्दगी है॥
(माया वर्मा)
*समाप्त*