यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

विसर्जन -शान्ति-अभिषिंचनम्

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यज्ञशाला के दिव्य वातावरण में रखा हुआ जल कलश अपने भीतर उन मंगलकारक दिव्य तत्त्वों को धारण कर लेता है, जो मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं आत्मिक गरिमा की अभिवृद्धि में सहायक होते हैं । जल कलश से पुष्प द्वारा सभी उपस्थित लोगों पर अभिसिंचन के साथ यह भावना रखें कि यज्ञ की भौतिक एवं आत्मिक उपलब्धियाँ इस जल के माध्यम से उपस्थित लोगों को प्राप्त हो रही हैं और वे असत् से सत् की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ेंगे ।

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः, पृथिवी शान्तिरापः, शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः, शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः, सर्व शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः । सर्वारिष्ट-सुशान्तिर्भवतु । -३६.१७

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