यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

अग्निस्थापनम्

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यज्ञाग्नि को ब्रह्म का प्रतिनिधि मानकर वेदी पर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं । उसी भाव से अग्नि की स्थापना का विधान सम्पन्न करते हैं । जब कुण्ड में प्रथम अग्नि-ज्योति के दर्शन हों, तब सब लोग उन्हें नमस्कार करें । अग्नि स्थापना से पूर्व कुण्ड में समिधाएँ इस कुशलता से चिननी चाहिए कि अग्नि प्रदीप्त होने में बाधा न पड़े । अग्नि के ऊपर पतली सूखी लकड़ी रखी जाएँ, ताकि अग्नि का प्रवेश जल्दी हो सके । एक चम्मच में कपूर अथवा घी में भीगी हुई रुई की मोटी बत्ती रखी जाए, उसमें अग्नि जलाकर स्थापित किया जाए । ऊपर पतली लकड़ी लगाने से अग्नि प्रवेश में सुविधा होती है । ॐ र्भूभुवः स्वर्द्यौरिव भूम्ना, पृथ्ावीव वरिम्णा । तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि, पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे । अग्निं दूतं पुरोदधे, हव्यवाहमुपब्रुवे । देवाँऽआसादयादिह । -३.५, २२.१७ ॐ अग्नये नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि । तदुपरान्त गन्ध, अक्षत-पुष्प आदि से अग्निदेवता की पूजा करें गन्धाक्षतम्, पुष्पाणि, धूपम्, दीपम्, नैवेद्यम् समर्पयामि ।
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