यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

कलशपूजनम्

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पूजा पीठ पर कलश रखा जाता है । यह धातु का होना चाहिए । कण्ठ में कलावा बँधा, पुष्पों से सुसज्जित, जल से भरे कलश के ऊपर कटोरी में ऊपर की ओर मुख वाली बत्ती का दीपक जला कर रखें ।

यह कलश विश्व ब्रह्माण्ड का, विराट् ब्रह्म का, भू पिण्ड (ग्लोब) का प्रतीक है । इसे शान्ति और सृजन का सन्देशवाहक कह सकते हैं । सम्पूर्ण देवता कलशरूपी पिण्ड या ब्रह्माण्ड में व्यष्टि या समष्टि में एक साथ समाये हुए हैं । वे एक हैं, एक ही शक्ति से सुसम्बन्धित हैं । बहुदेववाद वस्तुतः एक देववाद का ही एक रूप है । एक माध्यम में, एक ही केन्द्र में समस्त देवताओं को देखने के लिए कलश की स्थापना है । जल जैसी शीतलता, शान्ति एवं दीपक जैसे तेजस्वी पुरुषार्थ की क्षमता हम सबमें ओत-प्रोत हो, यही दीपयुक्त कलश का सन्देश है । दीप को यज्ञ और जल कलश को गायत्री का प्रतीक माना जाता है । यह दो आधार भारतीय धर्म के उद्गम स्रोत माता-पिता हैं । इसी से इनकी स्थापना-पूजा धर्मानुष्ठान में की जाती है । पूजन के मन्त्र बोलने के साथ-साथ कलश का पूजन किया जाए । कोई एक व्यक्ति ही प्रतिनिधि रूप में कलश पूजन करें, शेष सब लोग भावनापूर्वक हाथ जोड़ें ।

ॐ तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानः, तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश , समानऽआयुः प्रमोषीः । -१८.४९

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य, बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं, यज्ञं समिमं दधातु । विश्वेदेवासऽइह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ।

ॐ वरुणाय नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि । -२.१३

तत्पश्चात् जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से कलश का पूजन करें ।

जलम्, गन्धाक्षतं, पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि । ‍ ॐ कलशस्थ देवताभ्यो नमः ।

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