जीवन दीप्तिमान्, ज्वलनशील, प्रचण्ड, प्रखर और प्रकाशमान जिया जाना चाहिए, चाहे थोड़े ही दिन का क्यों न हो । धुआँ निकालती हुई आग एक वर्ष जले, इसकी अपेक्षा एक क्षण का प्रकाशयुक्त ज्वलन अच्छा । अपनी प्रसुप्त शक्तियों को जाग्रत् करने की प्रेरणा इस अग्नि प्रदीपन में है ।
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि, त्वमिष्टा र्पूते स सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्, विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत । -१५.५४, १८.६१