यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

यज्ञ-संचालन पंचोपचार पूजन पवित्रीकरणम्

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देव उद्देश्य की पूर्ति के लिए मनुष्य को स्वयं भी देवत्व धारण करना होता है ।। देव शक्तियाँ पवित्रता प्रिय हैं ।। उन्हें शरीर और मन से, आचरण और व्यवहार से शुद्ध मनुष्य प्रिय हैं ।। इसलिए यज्ञ जैसे देव प्रयोजन में संलग्नहोते समय शरीर और मन को पवित्र बनाना पड़ता है ।। पवित्रता की भावना करनी पड़ती है ।। भावना करें किहमारे भाव भरे आवाहन के नाते सूक्ष्म सत्ता हम पर पवित्रता की वृष्टि कर रही है ।। हम उसे धारण कर रहे हैं ।। बायें हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लिया जाए ।। मन्त्रोच्चारण के बाद उस जल को सिर तथाशरीर पर छिड़क लिया जाए ।।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं, स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।। ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः, पुनातु पुण्डरीकाक्षः, पुनातु ।। -वा०पु० ३३.६

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