इस युग्म को- (१) तेजस्विता-मधुरता (२) पुरुषार्थ-सन्तोष (३) उपार्जन- त्याग (४) क्रान्ति-शान्ति भी कह सकते हैं ।
प्रोक्षणी पात्र (बिना हत्थे वाला चम्मच जैसा उपकरण) में पानी लेकर निम्न मन्त्रों से वेदी के बाहर चारों दिशाओं में डालें । भावना करें कि अग्नि के चारों ओर शीतलता का घेरा बना रहे हैं । जिसका परिणाम शान्तिदायी होगा ।
ॐ अदितेऽनुमन्यस्व॥ (इति र्पूवे) ॐ अनुमतेऽनुमन्यस्व॥ (इति पश्चिमे) ॐ सरस्वत्यनुमन्यस्व॥ (इति उत्तरे) ॐ देव सवितः प्रसव यज्ञं, प्रसुव यज्ञपतिं भगाय । दिव्यो गन्धर्वः केतपूः, केतं नः पुनातु, वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु॥ (इति चतुर्दिक्षु)-१.१.७