यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

आहुतियाँ आज्याहुतिः

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सर्वप्रथम सात मन्त्रों से सात आहुतियाँ केवल घृत की दी जाती हैं । इन आहुतियों के साथ हवन सामग्री नहीं होमी जाती । घी पिघला हुआ रहे । स्रुवा को घी में डुबाने के बाद उसका पैंदा घृत पात्र के किनारे से पोंछ लेना चाहिए, ताकि घी जमीन पर न टपके । स्वाहा उच्चारण के साथ ही आहुति दी जाए । स्रुवा लौटाते समय घृत पात्र के समीप ही रखे हुए, जल भरे प्रणीता पात्र में बचे हुए घृत की एक बूँद टपका देनी चाहिए ।

घृत का दूसरा नाम स्नेह है । स्नेह अर्थात् प्रेम, सहानुभूति, सेवा, संवेदना, दया, क्षमा, ममता, आत्मीयता, करुणा, उदारता, वात्सल्य जैसे सद्गुण इस प्रेम-अभिव्यक्ति के साथ जुड़े हुए हैं । निःस्वार्थ भाव से उच्च आदर्शों के साथ साधना सम्पन्न की जाती है, उसे दिव्य प्रेम कहते हैं । यह दिव्य प्रेम, स्नेह-घृत यदि यज्ञ-परमार्थ के साथ जोड़ दिया जाए, तो वह देवताओं को प्रसन्न करने वाला बन जाता है । वही शिक्षण इन सात घृत आहुतियों में है । सच्चे प्रेम पात्र सात ही हैं । इन सातों को ईश्वररूपी सूर्य की सात किरणें कह सकते हैं । यही ब्रह्म-आदित्य के सात अश्व हैं ।

(१)प्रजापति-परमेश्वर

(२) इन्द्र-आत्मा

(३) अग्नि-वैभव

(४) सोम-शान्ति

(५) भुः- शरीर

(६) भुवः-मन

(७) स्वः- अन्तःकरण ।

इन सात देवताओं को सच्चे मन से प्यार करना चाहिए अर्थात् इनके परिष्कार, अभिवर्धन के लिए सतत प्रयतन करना चाहिए । यही सब देवताओं को दी गई सात आहुतियों का प्रयोजन है ।

१- ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम॥ १८.२८

२- ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय इदं न मम॥

३- ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये इदं न मम॥

४- ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय इदं न मम॥ -२२.२७

५- ॐ भूः स्वाहा । इदं अग्नये इदं न मम॥

६- ॐ भुवः स्वाहा । इदं वायवे इदं न मम॥

७- ॐ स्वः स्वाहा । इदं सूर्याय इदं न मम॥ -गो.गृ.सू. १.८.१५

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