यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

षोडशोपचारपूजनम्

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देवशक्तियों एवं अतिथियों के पूजन-सत्कार के १६ उपचार भारतीय संस्कृति में प्रचलित हैं । अपनी स्थिति तथा अतिथि के स्तर के अनुरूप स्वागत उपचारों का निर्धारण किया जाता रहा है । देवपूजन में दो बातें ध्यान रखने योग्य हैं


देवताओं को पदार्थ की आवश्यकता नहीं, इसलिए उन प्रसंगों में उपेक्षा एवं प्रमाद न बरता जाए । कोई सम्पन्न और सम्माननीय अतिथि अपने यहाँ आए तो 'उन्हें क्या कमी?' कहकर उन्हें आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराने में उपेक्षा नहीं बरती जाती । जो है, उसे भावनापूर्वक, सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाता है । ऐसी ही सावधानी देवपूजन में रखी जाए ।


देवताओं को पदार्थों की भूख नहीं है, पदार्थों के समर्पण द्वारा जो भावना, श्रद्धा व्यक्त होती है, देवता उसी से सन्तुष्ट होते हैं । यह ध्यान में रखकर अच्छे पदार्थ देकर देवताओं पर एहसान का भाव नहीं आने देना चाहिए । श्रद्धा-समर्पण को प्रमुख मानकर उसे बनाये रखना आवश्यक है । अभाववश पदार्थों में कमी रह जाए, तो उसकी पूर्ति भावना द्वारा हो जाती है ।



पूजन के समय एक प्रतिनिधि पूजन करें, शेष सभी व्यक्ति भावनापूर्वक कार्यक्रम को सशक्त बनाएँ । पूजन के स्थान पर एक स्वयंसेवक रहे, जो पूजा उपचार का क्रम ठीक से क्रियान्वित करा सके । एक मन्त्र बोलकर, सम्बन्धित वस्तु चढ़ाने का समय देकर ही दूसरा मन्त्र बोला जाए ।



ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
आवाहयामि, स्थापयामि॥१॥
आसनं समर्पयामि॥२॥
पाद्यं समर्पयामि॥३॥ अर्घ्यं समर्पयामि॥४॥
आचमनम् समर्पयामि॥५॥
स्नानम् समर्पयामि॥६॥
वस्त्रम् समर्पयामि॥७॥
यज्ञोपवीतम् समर्पयामि॥८॥
गन्धम् विलेपयामि॥९॥
अक्षतान् समर्पयामि॥१०॥
पुष्पाणि समर्पयामि॥११॥
धूपम् आघ्रापयामि॥१२॥
दीपम् दर्शयामि॥१३॥
नैवेद्यं निवेदयामि॥१४॥
ताम्बूलपूगीफलानि समर्पयामि॥१५॥
दक्षिणां समर्पयामि॥१६॥
सर्वाभावे अक्षतान् समर्पयामि॥

ततो नमस्कारम् करोमि


ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः॥




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