यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

सर्वदेवनमस्कारः

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देवपूजन के बाद सर्वदेव नमस्कार करना चाहिए । नमस्कार का उद्देश्य देव शक्तियों का सम्मान, उनके प्रति अपनी श्रद्धा का प्रकटीकरण तो है ही, अपने मन का, रुचि का झुकाव देवत्व की ओर करना भी है । हमारे मन में देवत्व से विपरीत अनर्थकारी आसुरी प्रवृत्तियों के प्रति भी झुकाव पैदा होता रहता है । उसे निरस्त करके पुनः कल्याणप्रद देवत्व के प्रति झुकाव-अभिरुचि पैदा करना भी एक पुरुषार्थ है । देव नमस्कार के समय ऐसे भाव रखे जाएँ । नमस्कार में छः देव दम्पतियों का तथा विशेष सामाजिक र्कत्तव्यों का वहन करने वाले देव तत्त्वों का सम्मान, अभिनन्दन, अभिवन्दन करते हुए मानवता के प्रति नमन-वन्दन की प्रक्रिया को पूरा किया गया है । १. विवेक को गणेश और उनकी पत्नी को सिद्धि-बुद्धि । २. समृद्धि और वैभव को लक्ष्मीनारायण । ३. व्यवस्था और नियन्त्रण को उमा-महेश । ४. वाणी और भावना को वाणी-हिरण्यगर्भ । ५. कला और उल्लास को शची-पुरन्दर । ६. जन्म और पालन कर्त्री देव प्रतिमाओं को माता-पिता कहा गया है । इन छः युग्मों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनकी उपयोगिता समझने-आवश्यकता अनुभव करने के लिए नमन-वन्दन किया जाए । ‍७. कुल देवता-अपने वंश में उत्पन्न हुए महामानव । ८. जीवन लक्ष्य को सरल बनाने वाले माध्यम -इष्ट देवता । ९. शासन-संचालक-ग्राम देवता । १०. स्थान देवता-पंच, समाज सेवक । ११. वास्तु देवता-शिल्पी, कलाकार, वैज्ञानिक । १२. किसी भी लोकमंगल कार्य में निरत परमार्थ परायण-सर्वदेव । १३. आदर्श चरित्र, सद्ज्ञान, साधनारत ब्राह्मण । १४. प्रेरणा और प्रकाश देने वाले स्थान या व्यक्ति तीर्थ । १५. मानवता की दिव्य चेतना-गायत्री । ‍यह सब देव तत्त्व हुए । ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः । ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः । ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः । ॐ मातापितृचरणकमलेभ्यो नमः । ॐ कुलदेवताभ्यो नमः । ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः । ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः । ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः । ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः । ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः । ॐ सर्वेभ्यस्तीर्थेभ्यो नमः । ॐ एतत्कर्म-प्रधान-श्रीगायत्रीदेव्यै नमः । ॐ पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ।
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