ऐसी चेतना के रूप में गुरु की वन्दना करके उस अनुशासन को अपने ऊपर आरोपित करना चाहिए, उसका उपकरण बनने के लिए भावभरा आवाहन करना चाहिए, ताकि अपनी वृत्तियाँ और शक्तियाँ उसके अनुरूप कार्य करती हुईं, उस सनातन गौरव की रक्षा कर सकें । हाथ जोड़कर नीचे लिखी गुरु-वन्दनाओं में से कोई एक अथवा वैसी ही अन्य वन्दनाएँ भावनापूर्वक सस्वर बोलें ।
ॐ ब्रह्मानन्दं परम सुखदं, केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं, तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलमचलं, सर्वधीसाक्षिभूतं, भावातीतं त्रिगुणरहितं, सद्गुरुं तं नमामि॥१॥ गु.गी. ६७
अखण्डानन्दबोधाय, शिष्यसंतापहारिणे । सच्चिदानन्दरूपाय, तस्मै श्री गुरवे नमः॥२॥