यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

विसर्जन -शुभकामना

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यह शुभकामना मन्त्र भी सबके कल्याण की अभिव्यक्ति के लिए है । हमारे मन में किसी के प्रति द्वेष न हो, अशुभ चिन्तन किसी के लिए भी न करें । जिनसे संबंध कटु हो गये हों, उनके लिए भी हमें मङ्गल कामना ही करनी चाहिए । द्वेष-दुर्भाव किसी के लिए भी नहीं करना चाहिए । सबके कल्याण में अपना कल्याण समाया हुआ है । परमार्थ में स्वार्थ जुड़ा हुआ है- यह मान्यता रखते हुए हमें सर्वमङ्गल की-लोककल्याण की आकांक्षा रखनी चाहिए । शुभ कामनाएँ इसी की अभिव्यक्ति के लिए हैं ।
सब लोग दोनों हाथ पसारें । इन्हें याचना मुद्रा में मिला हुआ रखें । मन्त्रोच्चार के साथ-साथ इन्हीं भावनाओं से मन को भरे रहें ।

ॐ स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां, न्याय्येन मर्ागेण महीं महीशाः ।
गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥१॥
र्सवे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः ।
र्सवे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्॥२॥
श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां, विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम् ।
तेज आयुष्यमारोग्यं, देहि मे हव्यवाहन॥३॥ -लौगा० स्मृ०


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