व्यासाय विष्णुरूपाय, व्यासरूपाय विष्णवे। नमो वै ब्रह्मनिधये, वासिष्ठाय नमो नमः॥१॥
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे, फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र । येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः । -ब्र०पु० २४५.७.११
ये सभी कृत्य आचार्य-संचालक के अपने संस्कार के हैं । इन्हें जितनी प्रगाढ़ श्रद्धा के साथ किया जाता है, दिव्य प्रवाह से जुड़ जाने की उतनी ही प्रभावी संभावना बन जाती है ।