यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

विसर्जन -घृतावघ्राणम्

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घृत आहुतियों से बचने पर टपकाया हुआ घृत, जल भरे प्रणीता पात्र में जमा रहता है । इसे थाली में रखकर सभी उपस्थित लोगों को दिया जाए । इस जल मिश्रित घृत में दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग को डुबोते जाएँ और दोनों हथेलियों पर मल लिया जाए । मन्त्र बोलते समय दोनों हाथ यज्ञ कुण्ड की ओर इस तरह रखें, मानों उन्हें तपाया जा रहा हो । यज्ञीय वातावरण एवं संदेश को मस्तिष्क में भर लेने, आँखों में समा लेने, कानों में गुँजाते रहने, मुख से चर्चा करते रहने और उसी दिव्य गन्ध को सूँघते रहने, वैसे ही भावभरा वातावरण बनाये रखने की सार्मथ्य पाने की इच्छा रखने वालों को यज्ञ भगवान् का प्रसाद घृत अवघ्राण से प्राप्त होता है ।


ॐ तनूपा अग्नेऽसि, तन्वं मे पाहि ।
ॐ आयुर्दा अग्नेऽसि, आर्युमे देहि॥
ॐ वर्चोदा अग्नेऽसि, वर्चो मे देहि ।
ॐ अग्ने यन्मे तन्वाऽ, ऊनन्तन्मऽआपृण॥
ॐ मेधां मे देवः, सविता आदधातु ।
ॐ मेधां मे देवी, सरस्वती आदधातु॥
ॐ मेधां मे अश्विनौ, देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ ।
- पा० गृ० सू० २.४.७-८


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