यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

विसर्जन - साष्टांगनमस्कारः

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सर्वव्यापी विराट् ब्रह्म को-विश्व ब्रह्माण्ड को भगवान् का दृश्य रूप मानकर 'सियाराम मय सब जग जानी । करौ प्रणाम जोरि जुग पानी॥' की भावना से घुटने टेककर भूमि में मस्तक लगाकर देव शक्तियों को, महामानवों को भाव-विभोर होकर अभिवन्दन-नमस्कार किया जाता है । उनके चरणों में अपने को समर्पित करने अर्थात् अनुगमन करने का संकल्प, आश्वासन व्यक्त किया जाता है । यही भूमि-प्रणिपात साष्टांग नमस्कार है ।

ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः॥

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