सुसंस्कारी बना सकने में सफल (kahani)

February 2003

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ईसा एक नगर में पहुँचे। वे एक ऐसे मुहल्ले में ठहरे, जो दुष्ट−दुराचारियों के लिए कुख्यात था। नगर के प्रतिष्ठित लोग ईसा के दर्शनों को पहुँचे और आश्चर्य से पूछा, भला इतने बड़े नगर में आपको सज्जनों के साथ रहने की जगह न मिली या आपने उनके बीच रहना पसंद न किया? हँसते हुए ईसा से पूछा, वैद्य मरीजों को देखने जाता है या चंगे लोगों को? ईश्वर का पुत्र पीड़ितों और पतितों की सेवा के लिए आया है। उसका स्थान उन्हीं के बीच तो होगा।

बाबा राघवदास उन दिनों गाँव−गाँव घूमकर लोगों को स्वच्छता का महत्त्व बता रहे थे। ग्रामीणों की अस्वच्छता के कारण कितने ही गाँव महामारियों की चपेट में आ गए थे। बाबा राघवदास साथियों के साथ वहाँ पहुँचे। ग्रामीणों से उन्होंने संपर्क करना प्रारंभ कर दिया। उन लोगों को सफाई का महत्त्व बताते और नियमित रूप से उस क्षेत्र में सफाई का कार्य भी स्वयं करते। कभी गलियों में झाड़ू लगाते, तो कभी मैले−कुचैले नौनिहालों को स्नान कराते और गंदे कपड़े धोते।

सप्ताह−दो सप्ताह की कौन कहे, बाबा राघवदास को महीनों निकल गए, पर चिकने घड़ों पर जैसे कोई असर ही नहीं, वहाँ के ग्रामीणों की प्रवृत्ति में कोई खास अंतर दिखाई न दे रहा था। एक दिन एक कार्यकर्त्ता अवसर देखकर उनसे पूछ ही बैठा, “आपको इन व्यक्तियों की सेवा करते महीनों बीत गए, पर कोई परिणाम दिखाई नहीं देता। मुझे तो यहाँ के लोग पूरे गंवार ही दिखाई देते हैं। यह अज्ञानी व्यक्ति अपने स्वभाव को तनिक भी बदलने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।”

बाबा बोल उठे, “बस भई, इतने में घबरा गए। जिस ग्रामीण जनता को हमने अज्ञान के अंधकार में वर्षों भटकाए रखा, उसकी उपेक्षा की, उसकी निःस्वार्थ भाव से सेवा, धैर्यपूर्वक करने पर उनमें स्वच्छता के संस्कार अवश्य पैदा होंगे।” यही हुआ। एक वर्ष के अंदर वे उस तथा आस−पास के सौ गाँवों को अपना कार्यक्षेत्र बनाकर उन्हें सुसंस्कारी बना सकने में सफल हुए।


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