कामयाबी के छह नायाब सूत्र

February 2003

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कामयाबी की राहों की तलाश हर किसी को हर कहीं रहती है। जो जहाँ है, वह वहीं प्रगति, उन्नति और उच्च विकास के मार्ग की खोज करता रहता है। इस खोज-तलाश में कई सफल होते हैं और कई असफल। अनेकों के लिए तो कामयाबी सदा स्वप्न कुसुम बनी रहती है। जिसका अहसास कल्पनाओं और स्वप्नों में तो होता है, पर यथार्थ के धरातल पर न उसकी सुगन्ध मिलती है और न स्पर्श। पल्ले पड़ती है तो सिर्फ हताशा की भटकन, निराशा की थकान एवं असफलता की कुण्ठा। सफल और कामयाब लोगों को देखकर मन इसी चिन्ता में डूबा रहता है कि आखिर इन्होंने किस जादुई शक्ति से अपनी मनचाही कामयाबी हासिल कर ली।

जिन्हें इन्सानी वजूद में गहरी पैठ है, जो मानवीय व्यक्तित्व की बारीकियाँ अच्छी तरह से जानते हैं, उन सबका कहना है कि कामयाबी हासिल करने की जादुई शक्ति सभी में होती है। पर कुछ लोग इसका इस्तेमाल करना जानते हैं और कुछ नहीं। कुछ को अपनी इस जादुई शक्ति का पता होता है तो कुछ को नहीं। इसका नजारा हम अपने आस-पास बड़े आराम से देख सकते हैं। हम और आप कहीं भी किसी आफिस, कारखाने, शिक्षण संस्थान अथवा किसी दूसरी जगहों पर काम करते हों, अपने चारों ओर कुछ सफल और परेशान लोग अक्सर दिख ही जाते हैं। इनमें से एक वे हैं जिन्होंने कामयाबी की राहें तलाश ली हैं और उन पर चल पड़े हैं, और दूसरे वे हैं जो राहों की तलाश में अभी भटक रहे हैं।

मानवीय व्यक्तित्व के गहरे जानकार कॉरनी गोल्डमैन ने इन्सानी जिन्दगी की बारीक छान-बीन करते हुए एक किताब लिखी है ‘हाउ टु फाइन्ड ओन सक्सेज़’ यानि कि अपनी सफलता कैसे पाएँ। इस पुस्तक में उनका कहना है कि सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। भगवान् ने हमको मनुष्य जीवन इसीलिए दिया है कि हम अपनी सफलता हासिल कर सकें। यदि अभी तक हम सफलता से दूर हैं तो इसका कारण केवल इतना भर है कि हमने अपनी आन्तरिक शक्ति और उसकी अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों को जाना नहीं है। गोल्डमैन का कहना है कि इन सफलताओं की राहों को यदि सही ढंग से जान लें और इनका सही इस्तेमाल करने लगें तो सफलता जल्दी ही हमारे कदम चूमने लगेगी।

गोल्डमैन और उनके साथी मनोवैज्ञानिक डेनियल रिचर्ड ने इन तरीकों को कुछ मुख्य बिन्दुओं में स्पष्ट किया है। इनमें से पहला महत्त्वपूर्ण बिन्दु है- नजरिया। डेनियल रिचर्ड का कहना है कि सफलताओं के पीछे श्रम एवं ज्ञान से ज्यादा प्रभाव अपने प्रति और परिस्थितियों के प्रति आपके नजरिये का होता है। यदि आपका नजरिया सकारात्मक है तो आप न केवल अपने लिए बल्कि औरों के लिए एक मधुर वातावरण का निर्माण कर सकेंगे। सकारात्मक नजरिया या विधेयात्मक दृष्टिकोण का मतलब है स्वयं की सामर्थ्य के प्रति विश्वास, हम कर सकेंगे, इस विचार पर गहरी आश्वस्ति। परिस्थितियां कितनी ही संघर्षपूर्ण और विकट क्यों न हों, पर वे इसीलिए हैं ताकि हमारी शक्तियाँ और अधिक निखर सकें। ऐसी सकारात्मक दृष्टि हमारे अन्दर साहस और सृजनशीलता का चुम्बकत्व पैदा करती हैं, जिससे कामयाबी अपने आप ही आकर्षित होने लगती हैं।

इस संदर्भ में दूसरा बिन्दु है- समय का सही उपयोग। गोल्डमैन का कहना है कि यदि आप कामयाबी चाहते हैं तो अपने कार्यों को प्राथमिकताओं के आधार पर वर्गीकृत करके समय के अनुसार करने की कोशिश करें। इस तरह सभी जरूरी कार्य बिना किसी तनाव के बड़े आराम से पूरे हो जाएँगे। इसके लिए बस केवल सही प्लानिंग की जरूरत है। इस बारे में एक कोशिश यह जरूर करते रहना चाहिए कि आज का काम कल पर टालने की जरूरत न पड़े। रोज का काम सही ढंग से पूरा हो जाने पर गहरी आत्मसंतुष्टि मिलेगी और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

तीसरे बिन्दु के रूप में गोल्डमैन और रिचर्ड ‘परिस्थितियों के’ सही उपयोग की बात कहते हैं। उनका कहना है कि यहीं हमारी मौलिक सूझ-बूझ की परख होती है। उनके अनुसार महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि परिस्थितियाँ कैसी हैं, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि हम उनका उपयोग किस तरह से करते हैं। परिस्थितियों का उपयोग करने की सही सूझ-बूझ हो तो परिस्थितियाँ न केवल हमारा उचित सहयोग करती हैं, बल्कि समुचित मार्गदर्शन भी करती हैं। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि सहयोग और मार्गदर्शन के लिए ठीक व्यक्तियों का चुनाव किया जाय और उनके सामने अपनी बात सही तरीके से रखी जाय। ठीक इसी तरीके से स्वयं भी औरों के सहयोग और समुचित मार्गदर्शन के लिए तत्पर रहा जाय।

चतुर्थ बिन्दु जो कामयाबी की सबसे महत्त्वपूर्ण राह है वह है- हमारा व्यक्तित्व। व्यक्तित्व के गुण जैसे पहनावा, रहन-सहन, वार्तालाप का तरीका आदि सफलता पर बहुत ज्यादा प्रभाव डालते हैं। इसी तरह ईमानदारी, विनम्रता, कर्त्तव्यनिष्ठ हमें अपनी कामयाबी की ओर तेजी से ले जाते हैं। ध्यान रहे कि हमारा व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है। इसलिए हमें अपने व्यवहार में सद्गुणों की साधना बहुत ही दृढ़ता से करनी चाहिए।

कामयाबी के लिए पाँचवा आवश्यक बिन्दु है- सतत सकारात्मक क्रियाशीलता। कामयाबी पाने की चाहत रखने वालों को गोल्डमैन की सलाह है कि वे अपने आप को सतत क्रियाशील रखें। परन्तु ध्यान रहे कि यह क्रियाशीलता पूरी तरह से सकारात्मक हो। यानि कि इसमें किसी के प्रति भी विरोधी भाव न हो। यानि कि अपने विकास व प्रगति के उद्देश्य तो इसमें निहित हों, परन्तु दूसरों से द्वेष व उनकी हानि की कामना कतई न हो। अहंकार, आलस्य, ईर्ष्या, बहस व बहानेबाजी से अपने को दूर रखकर सतत अपने उद्देश्य के प्रति एकनिष्ठ भाव से क्रियाशील रहा जाय। साथ ही अनुशासनहीनता व गलत व्यवहार जैसे तत्त्व जीवन में प्रवेश न करने पाएँ।

इस सम्बन्ध में छठवाँ और अन्तिम बिन्दु है- सन्तुलन बनाए रखना। इसका अर्थ है जीवन को समग्रता से जीना। यानि की जीवन में व्यक्तिगत कामयाबी महत्त्वपूर्ण है, परन्तु उतना ही महत्त्वपूर्ण अपना घर-परिवार भी है। सफलता के साथ स्वास्थ्य भी महत्त्वपूर्ण है। भौतिक जीवन में उपलब्धियों के साथ आध्यात्मिक एवं आन्तरिक प्रगति भी आवश्यक है। यह सब एक साथ तभी सम्भव है जब हम अपने जीवन में सन्तुलन बनाए रखना सीख जाएँ। जहाँ तक सम्भव हो एक जगह की परेशानियों को दूसरी जगह से दूर रखें। यह भी अनुभव करें कि जीवन के सभी पहलू मूल्यवान एवं महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें से किसी को भी उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए।

जीवन की समग्रता में ही सार्थक कामयाबी है। इस तरह इन बिन्दुओं को जीवन में उचित ढंग से आत्मसात कर लेने से कामयाबी की राहें न केवल प्रकाशित हो जाती है, बल्कि उन पर चलना भी आसान हो जाता है। जरा सोचिए तो सही है न यही वे तौर तरीके जिन्हें पिछले काफी समय से तलाश रहे थे। अब जब मिल गए हैं तो फिर देर किस बात की, तेजी से चल पड़िए कामयाबी की डगर पर। कुछ ही कदमों दूर कामयाबी आपका इन्तजार कर रही है।


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