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February 2003

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हमारी इच्छा है कि हमारे बच्चे सच्चे उत्तराधिकारी बनते हुए आदर्शों के क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा करते हुए उज्ज्वल भविष्य समीप लाते दिखाई पड़ें। सारी धरती के भाग्य को जब नए सिरे से लिखे जा रहा हो, तब कंधा मचकाकर उपेक्षा दिखाने वाले निश्चित ही अभागे कहलाए जाएँगे। अपने की अर्जुनों, सुग्रीवों, हनुमानों की श्रेणी में ला खड़ा करो। एक ही बात ध्यान रखो कि युग−परिवर्तन के लिए और अधिक समर्पण! समर्पण!! समर्पण!!! —परमपूज्य गुरुदेव पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य


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