अंग्रेजी की ‘अखण्ड ज्योति’ इस वसंत से आरंभ
इंग्लिश भाषा में बड़े दिनों से स्तरीय ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका की माँग थी। अब इसे शाँतिकुँज हरिद्वार से संपादित कर ‘अखण्ड ज्योति संस्थान’ मथुरा से इसी वर्ष द्वैमासिक (बायमंथली) पत्रिका के रूप में इस वसंत से आरंभ किया जा रहा है। प्रारंभ में इसे फरवरी, अप्रैल, जून, अगस्त, अक्टूबर व दिसंबर इस तरह छह अंकों के रूप में प्रतिवर्ष निकाला जाएगा। परिपूर्ण व्यवस्था बन जाने पर यह मासिक आवृत्ति के रूप में भी निकल सकेगी। इसका चंदा साठ रुपये वार्षिक भारत में एवं 600 रुपये प्रतिवर्ष विदेश में रखा गया है। बावन ग्लेज पृष्ठो में सुँदर गेटअप के साथ यह पंद्रह दिन पूर्व मिल जाए, ऐसी व्यवस्था की जा रही है। मुख्य संपादक अखण्ड ज्योति ‘हिंदी’ के संपादक डॉक्टर प्रणव पंड्या ही रहेंगे, संपादक श्री शंभूदास जी होंगे। लेख संबंधी जिज्ञासाएँ शाँतिकुँज, हरिद्वार लिख भेजें। चंदा अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा भेजे। वहीं से पत्रिका प्रकाशित होगी। चंदे संबंधी सारा पत्राचार मथुरा से ही करें।
महाकाल रथयात्रा
मकरसंक्रांति (14.1.2003) से आरंभ हुई महाकाल की रथयात्रा अब बदले रूट के अनुसार निर्धारित समय से पूर्व ही 13.2.03 की सायं हरिद्वार पहुँचेगी। इसकी प्राण—प्रतिष्ठा 1 मार्च महाशिवरात्रि के दिन प्रातः देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में की जाएगी। हर स्थान पर प्रातः ध्यान−प्रार्थना−पूजन आदि के बाद यज्ञ होगा। फिर अपनी यात्रा पर यह आगे चल देगी। शाम को प्रदर्शनी अवलोकन, महाकाल पूजन एवं उसके बाद संगीत के साथ उद्बोधन होगा। रात्रि को रथयात्रा वहीं रुकेंगी। हर स्थान पर यह रुटीन होगा। प्रायः पाँच वाहन इस रथयात्रा के साथ चल रहे हैं। इसका बदला हुआ रूट इस प्रकार है—नासिक (14.1.03), चाँदबड़, धुले, शिरपुर, सेंधवा, धामनोद, इंदौर, उज्जैन, देवास, शाजापुर, राजगढ़, कुँभराज, गुना, शिवपुरी, झाँसी, डबरा, ग्वालियर, मुरैना, धौलपुर, आगरा, आँवलखेड़ा, मथुरा, फरीदाबाद, नोयडा, गाजियाबाद, मोदीनगर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, हरिद्वार। इंदौर, उज्जैन, आगरा एवं मथुरा यात्रा दो दिन रुकेगी। शेष स्थान पर एक दिन । परिजन अपने−अपने स्थानों पर इस यात्रा का प्रसन्नतापूर्वक स्वागत करें।
भावी अंतःजागरण सत्र
अंतः ऊर्जा जागरण सत्र अभी फरवरी व मार्च, 2003 के दो महा में और संपन्न होंगे। फरवरी माह में बदली तारीखों में से सत्र होंगे, क्योंकि प्रथम सप्ताह में वसंत पर्व आ रहा है। फरवरी, 2003 के सत्र इस प्रकार हैं—1 से 13, 14 से 18, 19 से 23 तथा 24 से 28। इस प्रकार फरवरी में कुछ चार सत्र हैं। मार्च, 2003 में 1 से 5, 6 से 10, 11 से 15, 16 से 20, 21 से 25 तथा 26 से 30 की तारीखों में कुल छह सत्र संपन्न होंगे। इसके तुरंत बाद नवरात्रि हैं। इसके बाद के सत्र अभी निर्धारित होते हैं। ग्रीष्मावकाश के कारण ये सत्र अब अगस्त से ही आरंभ होंगे। आवेदकों को प्रत्येक सत्र के एक दिन पूर्व दोपहर 13 बजे तक पहुँच जाना चाहिए। अनुशासन आदि समझकर अपनी साधना विधि की सारी सामग्री लेकर उन्हें अपने आवंटित कक्ष में संध्या से पूर्व ही पहुँचना होता है। वे ही आवेदक आएँ, जिन्हें स्वीकृति यहाँ से मिल चुकी हो। साधना काल के नियम बहुत कड़े हैं। प्रत्येक साधक को पाँच दिन तक एक ही साधना कक्ष में अकेले मौन रहकर निर्धारित साधना करनी होती है। अतः जिन्हें साधना का अनुभव हो व शरीर मन से स्वस्थ हों, वे ही आवेदन करें। नियमावली पत्र भेजकर या किन्हीं के हाथों मँगवा लें। एक बार सत्र संपन्न कर चुके परिजन दोबारा आवेदन न करें।