संगीतकार गाल्फर्ड के पास उसकी एक शिष्या अपने मन की व्यथा कहने गई कि वह कुरूप होगे के कारण संगीत मंच पर जाते ही यह सोचने लगती है कि दूसरी आकर्षक लड़कियों की तुलना में उसे दर्शक नापसंद करेंगे और हँसी उड़ाएंगे। यह विचार आते ही वह सकपका जाती है और गाने की जो तैयारी घर से करके ले जाती है, वह सब गड़बड़ा जाती है। घर पर वह मधुर गाती है, इतना मधुर, जिसकी हर कोई प्रशंसा करे, पर मंच पर जाते ही न जाने उसे क्या हो जाता है कि हक्का-बक्का होकर वह अपनी सारी प्रतिभा गँवा बैठती है। गाल्फर्ड से उसे एक बड़े शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि देखते हुए गाने की सलाह दी और कहा, वस्तुतः वह कुरूप नहीं, जैसी कि उसकी मान्यता है। फिर स्वर की मधुरता और कुरूपता का कोई विशेष संबंध नहीं है जब वह भाव-विभोर होकर गाता है, तब उसका आकर्षण बहुत बढ़ जाता है और उसमें कुरूपता की बात कोई सोच भी नहीं सकता। व अपने मन में से हीनता की भावना को निकाल दे। सुँदरता के अभाव को ही न सोचती रहे, वरन् स्वर की मधुरता और भाव विभोर होने की मुद्रा से उत्पन्न आकर्षण पर विचार करे और अपना आत्मविश्वास जगाए।
लड़की ने यही किया और आरंभिक दिनों में जो सदा सकपकाई हुई रहती थी और कुछ आयोजनों में जाने के बाद एक प्रकार से हताश ही हो गई थी, अब क्या साहस और उत्साह इकट्ठा करने पर उसने बहुत प्रगति की और फ्राँस की प्रख्यात गायिका मेरी बुडनाल्ड के नाम से विख्यात हुई।