कालूराम ने पुत्र को खेती करने का आदेश दिया। कई दिन बाद पूछा, बेटा! तेरी खेती का क्या हुआ? खूब लहलहा रही है पिताजी, बालक ने उत्तर दिया। मैंने शरीररूपी खेत में सत्कर्म का हल चलाया, उसमें ईश−भजन के बीज बोए, सत्संग की खाद और संतोष के जल से सींचा है, अब क्या है—सर्वत्र आनंद का अन्न उग रहा है। उत्तर सुनकर पिता अवाक् रह गए। धर्म की खेती करने वाला यही बालक आगे चलकर ‘नानक’ हुआ।
हजरत उमर ने एक युद्ध जीता। वहाँ की व्यवस्था सही करने के लिए उनका पहुँचना आवश्यक था। सो वे कुछ साथियों सहित उस यात्रा पर निकल पड़े। तीन आदमियों के पीछे एक ऊँट भी साथ था। दो पीठ पर सवार होते, तीसरा नकेल पकड़कर आगे चलता।
सिलसिला बराबर चलता रहा और वह नगर आ गया, जहाँ उन्हें पहुँचना था। प्रजाजन स्वागत की तैयारी किए बैठे थे। एक सवार ने खुद उतर पड़ने और हजरत को सवार होने के लिए कहा।
जवाब था, हम सबकी हैसियत एक है। नियम−अनुशासन के निभाने में ही हमारी शान है। हजरत ऊँट की नकेल पकड़े हुए ही शहर में घुसे। उनके इस शिष्ट व्यवहार पर सभी प्रजाजन पुलकित हो उठे। उन्हें मिलने वाले अपरिमित सम्मान का यही कारण था। दूसरों के प्रति सद्भाव, सम्मान की प्रतिक्रिया अनेक गुनी फलित होकर मिलती है।
पितामह ब्रह्म को सृष्टि के निर्माण की प्रेरणा−आत्मबल संपादन की स्फुरण हुई और उन्होंने सृष्टि रचकर जीवधारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया−कुछ अर्जित करना हो, तो आत्मदेव की शरण में जाओ और उसी से पाने का प्रयास करो।
ब्रह्माजी कमल के फूल पर बैठे हुए चिंतन में लीन थे। वे सोच रहे थे सृष्टि का निर्माण कैसे करूं। इसी असमंजस में पड़े हुए, ब्रह्मा को एक आकाशवाणी सुनाई दी, जो कह रही थी, तप कर, तप कर। ब्रह्माजी आकाशवाणी को ईश्वरीय आदेश मानकर तप में संलग्न हो गए। उन्होंने लंबे समय एक घोर तप किया और उसी के बल पर उन्हें सृष्टि के निर्माण की क्षमता प्राप्त हुई। पुरुषार्थ और साहस करके ही ब्रह्माजी ने कुछ पाया था। यही मार्ग ब्रह्मा द्वारा रचे गए प्रत्येक प्राणी के लिए है। उद्योगी मनुष्य उन्नति करते एवं सुख पाते हैं और अकर्मण्य व्यक्ति भाग्य को दोष देकर रोते−झींकते जिंदगी पूरी करते हैं।