कार्य के प्रति सम्मान का भाव (kahani)

February 2003

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संत पुँडरीक को पता चला कि किसी कारण पाटलिपुत्र के दो श्रेष्ठियों में कुछ आपसी मनोबल मालिन्य पैदा हो गया है। दोनों उनके शिष्य थे। लोगों ने कहा, “उन्हें समझाकर पुनः एकता स्थापित करा दें।” संत बोले, “समझाने से काम न चलेगा, उनमें सद्भाव पैदा करना पड़ेगा।”

संत ने किसी से कुछ न कहा, दोनों आते, उनके पास बैठे रहते। कभी−कभी संत दोनों को एक साथ काम बतला देते। दोनों करते। आश्रम की स्वच्छता में, आगंतुकों को भोजन कराने में, पूजन की व्यवस्था करने में वे ऐसी स्थिति पैदा करते कि दोनों श्रेष्ठियों को सहयोगपूर्वक काम करना पड़ता । गुरु के प्रति श्रद्धाभाव के कारण दोनों पूरे मनोयोग से कार्य करते। सहयोग लेते−देते, एक−दूसरे के कार्य के प्रति सम्मान का भाव पैदा हुआ, सद्भाव बढ़ा और बिना किसी के कुछ कहे उनका मनोमालिन्य दूर हो गया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118