भयावह संकट की वेला में हम सबका दायित्व

March 2001

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अभी फरवरी अंक हेतु लिखे लेख ‘राष्ट्रव्यापी दुर्भिक्ष और हम’ की स्याही भी नहीं सूखी थी कि एक अति भयावह त्रासदी ने सारे भारत को गणतंत्र दिवस के दिन अपना ग्रास बना लिया। धरती के कंपन ने महाकाल की वह रौद्र लीला दिखाई है, जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पूरे भारत, नेपाल, पाकिस्तान, ईरान तक अपना प्रभाव दिखाने वाले प्रायः 7.9 रिएक्टर स्केल पर आए इस भूकंप का केंद्र भुज-कच्छ (गुजरात) से 20 किलोमीटर उत्तर पूर्व में था। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को प्रातः 8.46 पर आए इस दैवी प्रकोप ने गुजरात में जो तबाही का ताँडव मचाया है, उसे देख लगता है कि सूखे से पहले से जूझ रही गुजरात की जनता अब उस त्रासदी को कैसे झेलेगी। इससे उबरने में वर्षों लगेंगे।

समृद्धि के केंद्र, औद्योगिक क्राँति की धुरी अहमदाबाद सहित सारे गुजरात ने यह कोप झेला है। भुज तो प्रायः पूरा नगर ही ध्वस्त हो गया है। ऐसा लगता है कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यहाँ आए भूकंप से मृत्यु देवता अघाए नहीं थे कि पुनः अपने काल के गराल में उनने हजारों को ले लिया। कच्छ के लोग अपनी जुझारू वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। सारे भारत व विश्व में वे छाए हुए हैं एवं बड़े स्तर पर व्यापार उनके हाथ में है। किंतु अभी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तो लगता है कि भूकंप का केंद्र होने के कारण सर्वाधिक जन-धन हानि कच्छ क्षेत्र को ही उठानी पड़ी है।

बापू की जन्मभूमि, सरदार पटेल की कर्मभूमि एवं बापा जलाराम की, अनेकों संतों की तपोभूमि गुजरात कुछ ही क्षणों में भूकंप की मार से इतना क्षतिग्रस्त हुआ है कि अभी यह अंदाज लगाने में ही बड़ा समय लगेगा कि नुकसान कितना हुआ है। भव्य गगनचुँबी भवन कुछ ही क्षणों में जमीन पर आकर बिस्मार हो गए। उनके मलबों में दबे-पिसे व्यक्ति जब तक निकल पाएँगे, मालूम नहीं कि वे जीवित हैं कि नहीं। यह पंक्तियाँ लिखे जाने तक मात्र गुजरात में ही जनहानि 20,000 की संख्या को पार कर रही थी। निश्चित ही यह संख्या बढ़ेगी। उनकी संख्या सर्वाधिक होगी, जिनके घर में एक या दो सदस्य रह गए, वे किसी तरह बच गए अथवा घायल होकर जो अब और भी विपन्न स्थिति में आ गए हैं। छत तो गई ही, सामान का भी नुकसान हुआ, अब औरों के आश्रय पर टिके हैं।

यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है। पिछले पचास वर्षों में आए भूकंपों में यह सबसे अधिक मारक क्षमता वाला है। ऐसे में किसी को भी हाथ-पर-हाथ रखकर नहीं बैठना है। देश-विदेश से लगातार सहायता दौड़ी चली आ रही है, पर मूल आवश्यकता अभी उन स्वयंसेवकों की है, जो लोगों को सामयिक कष्ट से राहत दिला सकें। गिरे हुए-खंडहर हुए भवन तो फिर बन जाएँगे, पर ध्वस्त परिवार-आहत भावनाओं को पुनर्निर्मित करना सबसे कठिन कार्य है।

गायत्री परिवार सभी संकटों में एकजुट हो प्रयास करता रहा है। पहले भी लाटूर, उत्तरकाशी, चमोली में आए भूकंप तथा काँडला, एरेज्मा (उड़ीसा) की तूफानी विभीषिकाओं में इसके स्वयंसेवकों ने आगे बढ़-चढ़कर साहस दिखाया है एवं हर दृष्टि से सरकारी प्रयासों में सहयोगी की भूमिका निभाई है। अब इस संकट की घड़ी में भी सभी परिजनों से इस विषम परिस्थिति में एकजुट हो जूझने का आह्वान किया जा रहा है।

भूकंप आने के चौबीस घंटे के अंदर चार वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं की अगुआई में सहायता दल-चिकित्सकों, कंबलों, दवाओं, राशन आदि के साथ गुजरात रवाना कर दिए गए हैं। सारे परिजनों से कहा गया है कि वे राहत कार्य हेतु कैंप लगाएँ एवं केंद्रीय पर्यवेक्षक दलों का सहयोग करें। शासकीय सहायता अपने स्तर पर चलेगी। हमारे परिजन जो कि प्राणवान् हैं, गायत्री के तत्त्वदर्शन से जुड़े हैं, न्यूनतम दस लाख की संख्या में गुजरात में हैं एवं हमारे अपने प्रज्ञासंस्थान, शक्तिपीठ भी तीन सौ से अधिक हैं। सबसे बड़ी जरूरत जो अब पड़ेगी, वह है लाँगटर्म चिकित्सीय सहायता, आच्छादन-शेल्टर, मनोवैज्ञानिक परामर्श (काउंसिलिंग) तथा पुनर्वास की। यही वह समय है, जब सभी संवेदनशील परिजन चाहे वे गुजरात के हों, मध्यप्रदेश या महाराष्ट्र, राजस्थान के अथवा देश के किसी भी हिस्से के, बढ़-चढ़कर इस राहत कार्य में साथ दें, भागीदारी करें। पूरा यह माह परीक्षा से भरा हुआ है। दुःखी-पीड़ितों तक सहायता-सामग्री पहुँची कि नहीं, यह देखने का कार्य भी एक प्रामाणिक तंत्र के नाते गायत्री परिवार के स्वयंसेवकों को ही सँभालना है। अभी सभी परिजनों से राहत कार्यों में लगने एवं खुलकर तन-मन-धन से सहायता करने को कहा जा रहा है। जो चिरनिद्रा में सो गए, उनकी आत्मा को शाँति मिले एवं जो घायल हैं, परिजनों के विछोह से दुःखी हैं, दग्ध हैं, उन्हें संबल मिले, शक्ति मिले, यही वेदमाता से प्रार्थना है।


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