विज्ञान की विकास यात्रा के साथ उठते कुछ प्रश्न

March 2001

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नई सहस्राब्दी में 3 से 7 जनवरी सन् 2001 को नई दिल्ली में भारतीय विज्ञान काँग्रेस का महाधिवेशन हुआ। इस महाधिवेशन का यही निष्कर्ष निकाला गया कि विज्ञान ने मानव समाज को अद्भुत एवं चमत्कारिक अनुदान प्रदान किए हैं। अंधविश्वासों से डरा-घिरा मानव वैज्ञानिक सोच पाकर स्वतंत्र एवं खुशहाल जिंदगी जी पाया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से भौतिक जीवन को एक नया आयाम मिला है। इससे रहन-सहन, आहार-व्यवहार और दर्शन में व्यापक बदलाव आ गया है। आज विज्ञान के बिना जीवन की गतिविधियाँ अधूरी प्रतीत होती हैं। विज्ञान ने दूरियों को घटाकर संसार को एक गाँव में तब्दील कर दिया है।

पश्चिमी दुनिया में कोपरनिकस ने एक नई वैज्ञानिक सोच की शुरुआत की थी। इस सोच की देकार्ते और आइंस्टीन ने व्यापक व्याख्या करके अद्भुत सूत्र रूप में पिरोया। इससे विज्ञान ने आधुनिक युग में प्रवेश किया। उच्च प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी यात्रा इन्हीं प्रयोगों के पश्चात् ही प्रारंभ हुई तब से आविष्कारों का सिलसिला ऐसा चला कि रुकने का नाम ही नहीं लेता।

आविष्कारों की यह कथा सही मायने में इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो के जमाने में शुरू हुई थी। उन्होंने 1610 ई. में ऐ ऐसा टेलीस्कोप तैयार किया, जिसकी सहायता से किसी भी चीज को हजार गुना बड़ा देखा जा सकता था। अगले दो सौ साल तक इस उपकरण को परिष्कृत कर स्पेक्ट्रोस्कोप बनाया गया। इसके द्वारा न केवल ब्रह्माँड के दूसरे ग्रह-नक्षत्रों को देखा जा सकता था, बल्कि आकार के बारे में भी अनुमान लगाया जा सकता है।

सत्रहवीं शताब्दी में ब्रिटिश वैज्ञानिक और गणितज्ञ आइजक न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण सिद्धाँत और गति के नियम मील के पत्थर साबित हुए। 1687 में न्यूटन ने ‘प्रिंसिपिया मैथेमेटिका’ नामक एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि ब्रह्माँड में प्रत्येक पिंड एक दूसरे पिंड को अपनी ओर आकर्षित करता है और साथ ही प्रत्येक पिंड अपनी यथास्थिति भी बनाए रखने का प्रयास करता है। न्यूटन ने गति के तीन नियमों की व्याख्या भी की।

विज्ञान ने इस मुकाम तक पहुँचने से पहले कई दूसरे पड़ावों को भी पार किया। 1289 में उत्तल चश्मों का आविष्कार इटली के एक व्यक्ति द्वारा किया गया। सोलहवीं शताब्दी के अंत में नीदरलैंड के जेड जैनसन ने माइक्रोस्कोप की खोज की। सत्रहवीं शताब्दी में वैज्ञानिक विकास के चरणों में और तेजी आई। 1621 में स्लाइड रुल की खोज हुई एवं 1623 में विल्हेम शिकार्ड द्वारा अनुफलक निर्मित किया गया। 1644 में टाँरिसेल ने बैरोमीटर का विकास किया। 1656 में अमेरिकी विज्ञानी सी. हायगन्स ने लोलक घड़ी का एवं 1698 में ब्रिटेन के थामस सेवरी ने स्टीम इंजन का आविष्कार किया।

इस बीच चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी कतिपय जानकारियाँ उपलब्ध हुईं। 1316 में इटली के मानडिनो ने पहली बार शारीरिक संरचना के बारे में बताया। 1648 में बेल्जियम के ज्याँ बैप्टिस्ट वैन हेलमंट ने जीव रसायन शास्त्र की स्थापना की एवं 1683 में ल्यूवेनहुक ने बैक्टीरिया की खोज की।

अठारहवीं सदी में विज्ञान के कई और आयाम खुले। 1725 में चीन में मापिनी घड़ी बनी। 1735 में ब्रिटेन के हैरिसन द्वारा क्रोनोमीटर का आविष्कार किया गया। 1765 में वाष्प इंजन का कंडेंसर विकसित हुआ, जिसे ब्रिटेन के जेमन वाट ने खोजा। 1766 में कैवडिश ने हाइड्रोजन का पता लगाया। 1769 में फ्राँसीसी वैज्ञानिक निकोलस कुगनोट ने वाष्प-कार का निर्माण किया। 1780 में बाइफोकल लैंस, 1783 में गुब्बारा, 1785 में पावरलूम, 1787 में टेलीग्राफ का आविष्कार हुआ। फ्राँस के ए.जे. गारनेरिन ने 1797 में पैराशूट का निर्माण कर मनुष्य को हवा में कुलाचें मारने की विद्या सिखाई।

इसी सदी में ही 1768 में जान हंटर ने प्रायोगिक और शल्य पैथालॉजी की नींव डाली। 1798 में ब्रिटेन के एडवर्ड जेननर ने टीके की खोज की। इस सदी के अंत में एंटमोलॉजी का स्वरूप सामने आ चुका था।

उन्नीसवीं सदी में विज्ञान के चमत्कारपूर्ण आविष्कारों एवं उपलब्धियों ने मानव समाज को आश्चर्यचकित कर दिया। इस सदी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ थीं, बिजली का बल्ब, रेडियो, सिनेमा, फोटोग्राफी, टेलीफोन आदि।

1800 में इटली के विज्ञानी वोल्टा ने बैट्री की खोज की। 1804 में ब्रिटेन में इंजन का निर्माण हुआ। 1805 में ब्रिटेन में ही इलेक्ट्रोप्लेटिंग की तकनीकी विकसित हुई। 1807 में अमेरिकी वैज्ञानिक फुलर्टन ने पहली बार स्टीमबोट बनाई। 1808 में इटली के पी. टैरी ने टाइपराइटर का आविष्कार किया। 1824 में स्काटलैंड के जॉर्ज स्टफेंसन ने रेलवे इंजन का आविष्कार किया। 1816 में सेफ्टी लैंप, 1817 में डेंटल प्लेट, 1824 में ब्रिटेन में पोर्टलैंड सीमेंट की खोज हुई। 1824 में इटली के स्टरजियन ने विद्युत् चुँबक का आविष्कार किया। इसी वर्ष ब्रिटेन के डाँ. एम. एम. ट्यूरिंग ने इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर का निर्माण किया। 1826 में माचिस का अन्वेषण हुआ।

इन्हीं दिनों किसी हँसते-गाते क्षण को हमेशा के लिए सुरक्षित रखने हेतु फोटोग्राफी को विकसित किया गया। 1830 में लुईस डेगुएरे ने कॉपर प्लेट का इस्तेमाल करते हुए सर्वप्रथम फोटोग्राफिक विधि विकसित की। उस विधि से किसी भी चित्र का मात्र एक प्रिंट ही बन सकता था। इसी दौरान ब्रिटेन के विलियम फाँक्स टालबोट ने कलोटाइप का निर्माण किया। इसकी सहायता से नेगेटिव इमेज बनाना संभव हुआ, जिसका पॉजिटिव चित्र प्रिंट किया जा सकता था। सबसे पहले अमेरिकी नागरिक एडुविर्या मुब्रिज ने मानवों और अन्य जानवरों के फोटो लिए।

1831 में माइकल फैराडे ने डायनेमो का अनुसंधान किया। 1834 में फ्राँस में ए.एम. एम्पियर ने गैल्वेनोमीटर का आविष्कार किया। 1837 में अमेरिका में टेलीग्राफिक संकेत की खोज हुई। 1842 में मैकमिलन ने साइकिल का निर्माण किया। 1843 में ब्रिटिश वैज्ञानिक ए. बैन ने फैक्स मशीन को विनिर्मित किया। 1852 में फ्राँसीसी विज्ञानी हेनरी गिफ्फार्ड ने वायुयान का अन्वेषण किया। 1861 में अलेक्जेंडर पार्क्स ने सेल्यूलायड का एवं डॉ. गैटलिंग ने मशीनगन का निर्माण किया।

1864 में अमेरिका के जे. ग्राम ने विद्युत् मोटर की खोज की। इसी वर्ष अमेरिकी वैज्ञानिक लूनिस द्वारा रेडियो टेलीग्राफी का आविष्कार किया गया। 1876 में अमेरिका के ग्राहम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार कर सबको हैरत में डाल दिया। बेल टेलीफोन कंपनी ने सबसे पहले लंबी दूरी की टेलीफोन लाइन बिछाई। यह लाइन न्यूयार्क और बोस्टन के बीच थी। 1856 में पहला टेलीफोन केबिल डाला गया। उस समय केबिल के माध्यम से मात्र 26 काल एक समय में आते-जाते थे।

महानतम आविष्कारों में से एक एडीसन ने 1877 में ग्रामोफोन का एवं 1878-79 में बिजली के बल्ब का आविष्कार किया। इसके बाद एडीसन बिजली से सारे शहर को रोशन करने के उपायों पर काम करते रहे और 1882 में 85 ग्राहकों को एक ही जेनरेटर से बिजली की रोशनी दी।

1885 में फ्राँस के एल. प्रिंस ने फिल्म की खोज की। इस दिशा में पहल करते हुए फ्राँस के ई. जूल्स मैरी ने मूविंग पिक्चर कैमरा तैयार कर लिया। इस कैमरे से 12 तस्वीरें प्रति सेकेंड खींची जा सकती थीं। तत्पश्चात् काइनेटोस्कोप से तस्वीरों में चलने-फिरने का अहसास होने लगा। 1895 में फ्राँस के लुईस और एगस्ते लुमिएरे नामक दो भाइयों ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर सिनेमा का प्रदर्शन किया। परंतु सही मायने में फिल्म बीसवीं सदी में बनकर आई। 1927 में फिल्में बोलने लगीं और 1930 में इनमें रंग भी भर गया।

1885 में जर्मनी के जी. डैमलर ने मोटरसाइकिल का निर्माण कर आवागमन को सहज-सरल बनाया। 1888 में जर्मनी में पेट्रोल कार का आविष्कार कर इस दिशा में एक और कदम बढ़ाया। इसी वर्ष ब्रिटेन के एक टैस्ला ने इलेक्ट्रीक मोटर ए.सी. की खोज की। इस क्षेत्र में एक और महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ 1895 में जब जर्मनी के आर. डीजल ने डीजल इंजन का निर्माण करने में सफलता पाई। 1895 में उब्ल्यू. के. रोटेजेन ने एक्स रे की खोज की।

उन्नीसवीं सदी में चिकित्सा जगत् में मारफीन की खोज प्रारंभ हुई और इसके अंत तक प्रतिरक्षा विज्ञान ने भी विकास कर लिया था। इस बीच रेने लैनके का स्टेथोस्कोप, जेम्स सिंपसन का क्लोरोफार्म, लुई पाश्चर द्वारा रेबीज के टीके विकसित किए जाने की उपलब्धियाँ महत्त्वपूर्ण रहीं। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध यानि 1872 में जर्मनी के फर्डिनान कोव को माइक्रोबायोलॉजी का जनक कहा गया। कुष्ठ रोग एवं हैजे के वायरस, मलेरिया और डिप्थीरिया के वायरस को खोज निकाला गया। अतः 1892 में वायरोलॉजी नाम से चिकित्सा विज्ञान की नई शाखा की शुरुआत हुई। अंततः हार्मान के क्षेत्र में भी अनुसंधान प्रक्रिया चल पड़ी।

बीसवीं सदी तो विज्ञान का युग है ही। इस सदी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास हर क्षेत्र में हुआ है। इस सदी के आविष्कारों ने तो जैसे इतिहास को ही बदल डाला। चाँद की धरती में मानव का पहला कदम पड़ा एवं मंगल की सतह पर रोबोट उतारे गए। परंतु इसी सदी में मानवनिर्मित अणु बम विस्फोट से मानवजाति को भीषण संहार सहना पड़ा। इस घटना ने सभी को यह महसूस करने के लिए मजबूर किया कि वैज्ञानिक याँत्रिकता के साथ आध्यात्मिक भावनाओं का समागम एक अनिवार्य आवश्यकता है।

इस सहस्राब्दी के आखिरी चरण बीसवीं सदी में विज्ञान, कंप्यूटर एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इतना विकास हुआ है कि अगर इसे इससे पहले समस्त ज्ञात मानव विकास को सम्मिलित रूप से एक ओर कर दिया जाए, तो भी यह उस पर भारी पड़ेगा। इसी विकास के साथ मनुष्य ने इक्कीसवीं सदी में प्रवेश किया है। परंतु इसी विकास के साथ एक और प्रश्न खड़ा हो जाता है कि विज्ञान ने मनुष्य को जितनी अपार साधन-सुविधाएँ दी हैं, क्या मनुष्य उसे प्राप्त कर सुख-शाँति को वरण कर सका है? इस प्रश्न का एकमात्र हल है विज्ञान एवं अध्यात्म का गठजोड़। इस महासंबंध को स्थापित करने के बाद जो भी शोध-अनुसंधान होंगे, वे मनुष्य को सच्चे विकास की ओर ले जाएँगे। नई सहस्राब्दी वैज्ञानिकों-विचारशीलों से यही अपेक्षा करती है।


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