संवेदना घनीभूत (Kahani)

March 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अपने बेलूरमठ के कमरे में स्वामी जी बराबर बेचैनी से टहल रहे थे। संतों ने पूछा, स्वामीजी! क्या बात हुई? आप काफी परेशान हैं। वे बोले-इसी क्षण जापान के समीप समुद्र में एक जहाज डूबा है। मुझे उनका आभास हुआ है एवं मैं उनकी व्यथा सुन रहा हूँ। भक्तों ने कहा, स्वामीजी आप तो कलकत्ता में गंगा किनारे खड़े हैं, आपको कैसे पता चला? स्वामी जी कुछ जवाब न देकर मौन ध्यान में चले गए। अगले दिन समाचार आया कि ऐसी घटना जापान के समीप हुई, जिसमें पाँच सौ व्यक्ति डूब गए। जिस समय विवेकानंद बोल रहे थे, पाँच सौ व्यक्तियों की करुणा अवतारी चेतना रूपी विवेकानंद के हृदय से बोल रही थी। अवतार में सृष्टि की सारी संवेदना घनीभूत हो जाती है। वह उसी ब्रह्मभाव में जीता है।

परमपूज्य गुरुदेव अगस्त 1979 की अखण्ड ज्योति में लिखते हैं, “अवतार की प्रथम प्रेरणा, प्रथम प्रक्रिया देवमानवों के उत्पादन की होती है। वे आत्मपरिवर्तन का आदर्श उपस्थित कर अनेकानेकों को अनुगमन की प्रेरणा देते हैं। अग्रगमन ही साहसिकता है। यह पराक्रम देवमानवों के भाग्य में ही लिखा होता है। पीछे अनुगमन तो असंख्यों करने लगते हैं।” ............ “अवतार के द्वितीय चरण में अनेक व्यक्ति आदर्शवादी साहस का परिचय देते देखे जाते हैं। स्वार्थियों को परमार्थ अपनाते, पतितों को आदर्श अपनाते देखकर यही सिद्ध होता है कि हवा का रुख बदला और मौसम पलटा।” पूज्यवर के अनुसार इन दो प्रेरणाओं को लेकर ही दिव्य जन्म लेता है अवतार एवं दिव्य कर्म करने की प्रेरणा देता हुआ जीवन-मुक्ति, बंधन-मुक्ति का पथ प्रशस्त कर जाता है। अब इस अंक में इतना ही। शेष दिव्य कर्म की उत्तर व्याख्या वीतराग बनने के फलितार्थ-माहात्म्य अगले अंक में। क्रमशः

गुरुकथामृत-20


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118