विविध रोगों की यज्ञोपचार प्रक्रिया-2

March 2001

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अथर्ववेद के तीसरे काँड के ‘दीर्घायु प्राप्ति’ नामक 11वें सूक्त में ऐसे अनेक प्रयोगों का उल्लेख है, जिनमें यज्ञाग्नि में औषधीय सामग्री का हवन करके कठिन-से-कठिन रोगों का निवारण एवं जीवनी शक्ति का संवर्द्धन किया जा सकता है। इसी सूक्त में उल्लेख है-

यदि क्षितायुर्यदि व परेतो यदि मृत्योरन्तिकं नीत एव। तमा हरामि निऋतेरुपस्थादस्पार्शमेनं शतशारदाय॥

अर्थात् यदि व्यक्ति की आयु क्षीण हो गई हो, जीवनी शक्ति समाप्त हो गई हो और वह मरणासन्न हो, तो भी यज्ञ चिकित्सा के माध्यम से वह व्यक्ति रोग के चंगुल से छूट जाता है और सौ वर्ष तक जीवित रहने की शक्ति प्राप्त करता है।

सभी जानते हैं कि हृष्ट-पुष्ट शरीर न केवल रोगों से सुरक्षित रहता है, वरन् जीवन के सारे आनंद निरोग एवं पुष्ट शरीर वाला मनुष्य ही भोगता है। हवन में जो औषधीय एवं पुष्टिकारक पदार्थ डाले जाते हैं, उनके सूक्ष्म परमाणु शरीर में पहुँचकर उसे परिपुष्ट बनाते हैं। पुष्टिकारक एवं रोगनिवारक औषधियों-पदार्थों का खाना भी काया को बल प्रदान करता है, अतः इन्हें अवश्य खाया जाना चाहिए, परंतु उससे भी अधिक उपयोगी इनका हवन कर उससे उत्पन्न यज्ञीय ऊर्जा का लाभ उठाना है। हवन में दो गुण विशेष हैं- प्रथम यह कि खाने में संभव है कि एक साथ अधिक पौष्टिक पदार्थों का सेवन कर लेने पर लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़े, परंतु हवन के साथ यह समस्या नहीं रहती। उसके सूक्ष्म परमाणु सीधे रक्तप्रवाह में पहुँचते हैं और पाचन शक्ति पर कोई बोझ नहीं डालते। तभी तो पुत्रेष्टि यज्ञ में जब खाने के पदार्थों से वीर्य पुष्ट नहीं होता और अधिक खाने से पाचन शक्ति बिगड़ती है, उस समय हवन यज्ञ में डाले गए पौष्टिक पदार्थों के सूक्ष्म परमाणु सीधे रक्त में पहुँचकर आँतरिक शोधन करते हैं और मनवाँछित परिणाम प्रस्तुत करते हैं। दूसरे यज्ञीय ऊर्जा से परिमार्जित वस्तुओं की स्वच्छता एवं स्थिरता बढ़ जाती है। शारीरिक-मानसिक रुग्णता को हटाने-मिटाने में यज्ञ चिकित्सा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

पिछले अंक में बताया जा चुका है कि किस रोगी के लिए किस स्तर की हवन सामग्री प्रयुक्त की जाए। सामान्य रोगों के लिए सर्वोपयोगी हवन सामग्री एवं सूर्य गायत्री मंत्र का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। इसे हर स्तर का व्यक्ति अपनाकर हर प्रकार की दुर्बलता एवं रुग्णता से छुटकारा पा सकता है। आगे की पंक्तियों में सर्वप्रथम पाचन तंत्र से संबंधित कुछ रोगों के लिए विशेष हवन सामग्री का वर्णन किया जा रहा है, क्योंकि समस्त रोगों का उद्भव पाचन तंत्र की गड़बड़ी पर निर्भर करता है।

लीवर (यकृत) एवं तिल्ली तथा उससे संबंधित रोगों के लिए विशेष हवन सामग्री का उल्लेख अखण्ड ज्योति के पिछले अंक में किया जा चुका है। यहाँ आम उदर रोगों जैसे अपच, वमन, डायरिया, हैजा, बवासीर आदि को दूर करने के लिए प्रयुक्त होने वाली विशेष हवन सामग्री का वर्णन किया जा रहा है। इसके साथ पूर्व वर्णित हवन सामग्री-’नंबर एक’ अर्थात् (1) अगर, (2) तगर (3) देवदार (4) चंदन (5) रक्त चंदन (6) गुग्गुल (7) लौंग (8) जायफल (9) चिरायता और (10) असगंध को भी बराबर मात्रा में मिलाकर तब हवन किया जाता है। यज्ञोपचार का पूर्ण लाभ तभी मिलता है।

(2) अपच अर्थात् भोजन न पचना एवं संबंधित रोगों के लिए विशेष हवन सामग्री-

अपच के लिए निम्नाँकित औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर तैयार किया जाता है-

(1) तालीसपत्र (2) तेजपत्र (3) पोदीना (4) हरड़ (5) अमलतास (6) नागकेसर (7) कालाजीरा (8) सफेद जीरा।

हवन करने के साथ ही उपर्युक्त आठों चीजों के कपड़छन चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम एक-एक चम्मच मट्ठा या जल के साथ रोगी को खिलाने से शीघ्र लाभ मिलता है।

(3) वमन अर्थात् कै, उल्टी तथा संबंधित रोगों के लिए विशेष हवन सामग्री-

इसके लिए निम्नलिखित चीजों को मिलाकर हवन सामग्री तैयार की जाती है-

(1) वायविडंग (2) पीपल (3) छोटी पिप्पली (4) ढाक या पलाश के बीज या सूखे फल (5) गिलोय (6) निशोथ (7) नींबू की जड़ या सूखे फल (8) आम की गुठली (9) प्रियंगु (10) धाय के बीज

उक्त सभी दस चीजों के महीन छने हुए चूर्ण को सुबह-शाम एक-एक चम्मच शहद से खिलाना भी चाहिए।

(4) उदर रोग के लिए विशेष हवन सामग्री-

इसके लिए जिन औषधियों को हवन सामग्री बनाने में प्रयुक्त करते हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं-

(1) चव्य (2) चित्रक (3) तालीस पत्र (4) दालचीनी (5) आलूबुखारा (6) छोटी पिप्पली।

हवन करने के साथ-साथ इन छह चीजों को मिलाकर बनाए गए सूक्ष्म चूर्ण को एक-एक चम्मच जल के साथ सुबह-शाम रोगी को खिलाते रहना चाहिए।

(5) दस्त, डायरिया एवं संबंधित रोगों के लिए प्रयुक्त होने वाली विशेष हवन सामग्री-

(1) सफेद जीरा (2) दालचीनी (3) अजमोद (4) चित्रक (5) बेलगिरी (6) अतीस (7) सोंठ (8) तालमखाना (9) ईसबगोल (10) मौलश्री की छाल (11) तालमखाना (12) छुआरा।

उपर्युक्त सभी बारह चीजों को हवन के साथ ही सूक्ष्म चूर्ण बनाकर घोट-पीस एवं कपड़े से छानकर एक-एक चम्मच सुबह शाम दही या मट्ठे के साथ रोगी को पिलाते रहना चाहिए। जब दस्त लग रहे हों, तो परहेज का, पथ्यापथ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऐसी स्थिति में दूध व दूध से बने मीठे पदार्थ, तली-भुनी चीजें एवं गरिष्ठ चीजें नहीं देनी चाहिए।

(6) हैजा की विशेष हवन सामग्री

(1) धनिया (2)कासनी (3) सौंफ (4) कपूर (5) चित्रक।

इन्हीं पाँचों हव्य पदार्थों के सूक्ष्म पाउडर को हवन के साथ-साथ एक-एक चम्मच सुबह-शाम खिलाते रहना चाहिए।

(7) आँव-पेचिश आदि के लिए विशेष हवन सामग्री

(1) मरोड़फली (2) अनारदाना (3) पोदीना (4) आम की गुठली (5) कतीरा।

हवन के साथ-साथ उक्त पाँचों के महीन चूर्ण को जल के साथ एक-एक चम्मच सुबह-सायं रोगी को खिलाते रहने से द्विगुणित लाभ मिलता है।

(8) पाइल्स अर्थात् बवासीर, अर्श एवं तत्संबंधित रोगों के लिए विशिष्ट हवन सामग्री-

खान-पान की गड़बड़ी से प्रायः कब्ज बने रहने एवं अमीबायोसिस आदि के कारण यह बीमारी अधिकाँश लोगों में पाई जाती है। शुष्क एवं रक्तार्श दोनों ही स्थितियों में निम्नलिखित औषधियों से बनी हवि सामग्री अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है।

(1) नागकेशर (2) हाऊबेर (3) धमासा (4) दारुहल्दी (5) नीम की गुठली (निमोनी) (6) मूली के बीज (7) जावित्री (8) कमल केशर (9) गूलर के फूल।

इन सभी नौ चीजों को मिलाकर बारीक चूर्ण करके कपड़े से छान लेना चाहिए और हवन के साथ सुबह-शाम एक-एक चम्मच जल के साथ रोगी व्यक्ति को खिलाते रहना चाहिए।

असह्य पीड़ा की स्थिति में निम्नलिखित औषधियों की धूप भी दी जा सकती है। इस संबंध में वृहत् निघंटु-10, में उल्लेख है-

अश्वगंधोऽथ निर्गुण्डी वृहती पिप्पली फलम्। धूपोऽयं र्स्पशमात्रेण र्ह्यशसं शमने ह्यलम्॥

अर्थात् अश्वगंधा, निर्गण्डी, बड़ी कटेरी (कंटकारी), एवं पिप्पली, इन्हें अग्नि में जलाकर धूप देने से बवासीर-अर्श की पीड़ा शाँत होती है।

भावप्रकाश, निघंटु एवं अन्यान्य आयुर्वेद ग्रंथों में विभिन्न रोगों के लिए यज्ञोपचार में प्रयुक्त होने वाली कितनी ही वनौषधियों का वर्णन किया गया है। उनमें से हवन सामग्री में काम आने वाली कुछ प्रमुख वनौषधियों के नाम इस प्रकार हैं-ब्राह्मी, शतावरी, अश्वगंधा, विधारा, जटामाँसी, मंडूकपर्णी, शालपर्णी, इंद्रायण की जड़, मकोय, अड़ूसा, गुलाब के फूल, अगर, तगर, रास्ना, क्षीरकाकोली, पंडरी, प्रोक्षक, तालमखाना, बादाम, मुनक्का, जायफल, जावित्री, बड़ी इलायची, बड़ी हरड़, आँवला, बहेड़ा, छोटी पीपल, पुनर्नवा, नगेंद्र वामड़ी, चीड़ का बुरादा, गिलोय, चंदन, कपूर, केशर, गुग्गल, पानड़ी, मोथा, चिरायता, पितपापड़ा आदि। हवन सामग्री बनाने के लिए इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लिया जाता है तथा इनका दसवाँ भाग शक्कर एवं आठवाँ भाग शहद डालकर गोघृत में लड्डू बनाकर सूर्य गायत्री मंत्र से हवन किया जाता है।

(9) विष निवारण की विशिष्ट हवन सामग्री-

(1) वन तुलसी के बीज (2) अपामाग्र (3) इंद्रायण की जड़ (4) करंज की गिरी (5) दारुहल्दी (6) चौलाई के पत्ते (7) विनौला गिरी (8) लाल चंदन।

हवन के साथ ही इन्हीं आठ चीजों को मिलाकर बारीक चूर्ण बनाकर सुबह-शाम एक-एक चम्मच जल के साथ देते रहने से तत्काल लाभ मिलता है।

यज्ञ-हवन से रोगोपचार की महिमा अनंत है। आवश्यकता मात्र औषधि चयन, नियमितता एवं भाव-श्रद्धा की गहनता की त्रिवेणी के समन्वय की है। औषधि चयन के संदर्भ में आयुर्वेद ग्रंथों में कहा भी गया है-

सुरभीणि सुपुष्टेश्च कारकाणि सितादिकम्। द्रव्यारामादाय जुहुयाच्चतुर्थं रोगनाशकम्॥

अर्थात् सुगंधित, पुष्टिकारक, मधुर एवं रोगनाशक चार प्रकार के पदार्थों का हवन करने से नानाप्रकार के रोगों का निवारण होता है। क्रमशः


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