भविष्यसूचक ये विचित्र स्वप्न

March 2001

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स्वप्न दमित इच्छाओं की परिणति हैं, यह सत्य है, पर मिथ्या यह भी नहीं है कि उनमें भविष्यसूचक अनेक प्रत्यक्ष और परोक्ष संकेत छुपे होते हैं। यदि उन्हें भलीभाँति समझा और जाना जा सके, तो मनुष्य कितने ही प्रकार से स्वयं लाभान्वित हो सकता और अगणित अन्यों को भी लाभ पहुँचा सकता है। आएदिन होने वाले स्वप्न-दर्शन इसकी साक्षी हैं।

घटना सन् 1946 की है। तब विलवर राइट आर.ए.एफ. में फायटर पायलट थे। एक दिन प्रातः डाँग वोर्ले नामक उनका एक घनिष्ठ मित्र आया और कहने लगा कि आज की यात्रा से वह वापस नहीं लौट सकेगा, इसलिए उसका यह सामान उसके परिवार वालों तक पहुँचा दिया जाए।

अगली यात्रा वास्तव में उसके लिए प्राणघातक साबित हुई। उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ा हुआ था। डाँग वोर्ले बमबारी के लिए आगे-आगे चल रहा था। पीछे-पीछे उसका मित्र विलवर राइट अपना विमान उड़ा रहा था। अचानक डाँग वोर्ले के वायुयान में आग लग गई और वह मारा गया। इस प्रकार उसका स्वप्न सत्य सिद्ध हुआ।

इस घटना के बाद से विलवर राइट को भी ऐसे भविष्य-सूचक स्वप्न आने लगे, जो परीक्षा करने पर सत्य सिद्ध होते। उन्हें अक्सर घुड़दौड़ प्रतियोगिता के दृश्य दिखाई पड़ते। ऐसे स्वप्नों में वे प्रायः प्रतियोगिता स्थल पर मौजूद होते। साथ में उनका कोई मित्र भी होता। वे मित्र से जीतने वाले घोड़े का नाम पूछते। वह उसे बता देता। पीछे पता करने पर ज्ञात होता है कि सचमुच उसी नाम का घोड़ा विजयी हुआ।

विलवर को घुड़दौड़ में कभी रुचि नहीं रही, न वे कभी उसे देखने के लिए दौड़ स्थल पर गए, पर पता नहीं क्यों स्वप्न उन्हें प्रतियोगिता स्थल के ही दिखाई पड़ते थे। ऐसे ही एक दृश्य में वे उस मैदान में उपस्थित थे, जहाँ दौड़ का आयोजन हो रहा था। वे अपने मित्र से पूछते हैं कि जीत किसकी होगी? उसका उत्तर था, ‘एयरबोर्न’ नामक घोड़े की। विलवर प्रतिवाद करते हैं कि इस नाम का कोई अश्व दौड़ में हिस्सा नहीं ले रहा। साथी कहता है कि वह प्रतियोगिता जीत चुका है।

सपने की सचाई जानने के लिए विलवर ने सेंटलेगर में हो रही प्रतियोगिता में भाग ले रहे घोड़ों की लिस्ट मँगाई। उसमें ‘एयरबोर्न’ नामक घोड़े का नाम देखा, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। इसकी चर्चा उनने अपने मित्रों और कुटुँबियों से की, किंतु किसी ने उनकी बात पर विश्वास न किया। बाद में जब वह दौड़ में सचमुच प्रथम रहा, तो सभी को पछतावा होने लगा कि उसने उक्त अश्व पर बाजी क्यों नहीं लगाई। जिनने उस पर दाँव लगाए, उन-उनने भारी रकमें जीतीं। स्वयं विलवर ने भी इस स्वर्ण अवसर को खो दिया और पछताते रहे।

दो वर्ष पश्चात् उनने फिर एक स्वप्न देखा। इस बार उनसे कोई कह रहा था कि इसमें ‘एरिटिक प्रिंस’ बाजी मारेगा। प्रतियोगिता डर्वी में हो रही थी। पता लगाने पर विदित हुआ कि इस नाम का अश्व प्रतिभागियों में सम्मिलित है। उनने अपने एक मित्र से इसकी चर्चा की। दोनों ने उक्त घोड़े पर बाजी लगा दी। अंततः उसी की जीत हुई, फलतः उन्हें खूब धन प्राप्त हुआ।

अगला स्वप्न तब हुआ, जब विलवर सपत्नीक नेवार्क में ठहरे हुए थे। वहाँ उनका आतिथेय श्रीमती चेसराइट नामक एक महिला थी। इस बार के स्वप्न में घोड़े का नाम कुछ त्रुटिपूर्ण था। वह अपने एक अज्ञात मित्र से सपने में पूछते हैं कि अबकी बार प्रथम आने का गौरव किसे प्राप्त होगा? क्या ‘राडार’ नामधारी अश्व को? मित्र कुछ क्षण मौन रहकर सहमति में सिर हिलाता है, तभी विलवर की नींद टूट जाती है। इसकी चर्चा वे अपनी पत्नी और चेसराइट से करते हैं।

दूसरे दिन कैंब्रिजशायर में यह प्रतियोगिता होने वाली थी। चेसराइट को इसमें रुचि थी। अतः उसने दौड़ में भाग लेने वाले घोड़ों की जानकारी की। उसमें ‘राडार’ नामक कोई अश्व भाग नहीं ले रहा था। इसका निकटवर्ती नाम ‘नाहर’ ही हो सकता था, जो कि दौड़ में सम्मिलित था। अस्तु, उसने उसमें दाँव लगा दिया। जीत उसी की हुई। चेसराइट को इससे हजारों पाउंड प्राप्त हुए।

विलवर का यह अंतिम स्वप्न-दर्शन था। इसके बाद फिर कभी घुड़दौड़ संबंधी स्वप्न उसे नहीं दिखाई दिए।

अर्ल एटली ने अपने ‘संस्मरण’ में लिखा है कि किस प्रकार सपने में उन्हें एक सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिला तथा किस तरह ‘ग्राँड नेशनल डे’ के दिन होने वाली घुड़दौड़ प्रतियोगिता में विजयी घोड़ों के क्रमाँक उनके हाथ लगे। यों तो एटली को घुड़दौड़ में कोई चाव नहीं था, न वे सपनों की सचाई पर विश्वास करते थे, किंतु उक्त स्वप्न के बाद उनकी उत्सुकता बढ़ी और वे देखे गए घोड़ों के क्रमाँकों पर दाँव लगा बैठे। वे ही प्रथम और द्वितीय स्थानों पर रहे, जैसा कि स्वप्न संकेत हुआ था। इस घटना के उपराँत एटली की सपनों के प्रति आस्था सुदृढ़ हुई। वे इस बात को स्वीकारने लगे कि निरर्थक सपनों के मध्य सार्थक स्वप्न भी आ सकते और स्वप्नद्रष्टा को भावी घटनाक्रमों की कुछ स्फुट झाँकी करा सकते हैं।

जान गाडले ऑक्सफोर्ड का छात्र था। बाद में उसे लार्ड किलव्रेकन बनाया गया। एक बार उसने स्वप्न देखा कि वहाँ जो अश्व प्रतियोगिता अगले महीने जोने जा रही है, उसमें ‘विंदिल’ एवं ‘जुलाद्दीन’ नामक घोड़े क्रमशः प्रथम, द्वितीय आ रहे हैं। समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ कि ये दोनों घोड़े उसमें दौड़ने वाले हैं। गाडले ने 100 पौंड के टिकट खरीदे और उन पर बाजी लगा दी। उसकी जीत हुई।

इसके कुछ दिन पश्चात् उसने पुनः स्वप्न देखा कि ‘ट्यूवरगेज’ नामक अश्व आगामी प्रतियोगिता में जीतेगा। वैसा ही हुआ। विजयी घोड़े का नाम वास्तव में ‘ट्यूवरगेज’ था। अगले वर्ष उसने और कई बाजियाँ जीतीं। इसके उपराँत उसे हारने वाले घोड़ों के नाम दिखलाई पड़ने लगे। कुछ वर्ष पश्चात् एक बार पुनः उसे विजयी घोड़े का नाम दिखाई पड़ा। उसने देखा कि ‘ग्राँड नेशनल डे’ में ‘वाटमैन’ नाम के अश्व ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। पीछे यह भी सत्य साबित हुआ। अंत में वह ‘डेली मिरर’ समाचार पत्र में अपनी इसी लोकप्रियता के कारण ‘रेसिंग संवाददाता’ नियुक्त हुआ तथा अतींद्रिय दाँव लगाने वाले के नाम से विख्यात हुआ।

मिलता-जुलता प्रसंग इंडिपेंडेंट टेलीविजन के विज्ञान संवाददाता पीटर फेयरली से संबंधित है। एक दिन लंदन के ब्लैकन नामक स्थान पर घूमते हुए उसने अपने कार रेडियो में श्रीमती ब्लैकनी के लिए एक प्रार्थना सुनी। थोड़ी देर पश्चात् एक व्यक्ति से बातचीत के क्रम में ‘ब्लैकनी’ शब्द पुनः उसके कर्ण कुहरों से टकराया। वह इस शब्द के प्रति कुछ सतर्क हो गया। कार्यालय पहुँचा, तो सहयोगी के मुख से एक बार पुनः वही शब्द निकलता देख वह कुछ चिंतित हो उठा और सोचने लगा आज एक ही शब्द की पुनरावृत्ति भिन्न-भिन्न लोगों द्वारा क्यों कर हो रही है? इसी बीच दोपहर का भोजनावकाश हो गया। उसके मस्तिष्क में वही बात घूम रही थी। इसी विषय पर सोचते सोचते उसकी आँखें झपक गईं। कोई तंद्रावस्था में उससे कह रहा था, आज डर्वी की अश्व प्रतिस्पर्द्धा में ‘ब्लैकनी’ पुरस्कृत होगा। वैसा ही हुआ। जीत के साथ उसे काफी इनाम प्राप्त हुआ।

रात्रि की नीरवता हो या दिन की शाँति, इस स्थिति में चेतना जब निद्राकाल में शिथिल पड़ती और उत्तेजनारहित होती है, तो वह प्रकृति के गर्भ में पक रहे घटनाक्रमों को पकड़ने की क्षमता अर्जित कर लेती है। इसी को वह समय-समय पर सपनों के माध्यम से प्रकट करती है। इसलिए सपने हमेशा निरर्थक-निरुद्देश्य नहीं होते। कितनी ही बार उनमें सार्थक संकेत भी छुपे होते हैं। उपर्युक्त घटनाएँ इसी की प्रमाण हैं।


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