बारहवर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण के शक्तिप्रवाह ने जीवन-साधना तथा महापूर्णाहुति के पाँच चरणों ने जिन व्यक्तित्वों को, देवमानवों को जन्म दिया है, उन्हें सप्त आँदोलनों में नियोजित होने के लिए तुरंत प्रेरित किया जा रहा है। व्यावहारिक प्रशिक्षण उनका क्षेत्रीय स्तर पर भी चलेगा व केंद्र में भी, किंतु न्यूनतम तो किन्हीं सूत्रों से शुरुआत हो ही सकती है। ऐसे सूत्र यहाँ दिए जा रहे हैं।
(1) साधना आँदोलन
साधना संकल्पों के साथ जीवन-साधना का रूप ले। श्री अरविंद के अनुसार “सारा जीवन ही योग है।” हर श्वास को साधनामय बनाएँ।
अपनी उपासना नियमित बनाएँ। प्रातः आत्मबोध, रात्रि में तत्त्वबोध की साधना करें। षट्कर्म एवं ज पके साथ ध्यान का क्रम नियमित रखें। ध्यान के लिए परमपूज्य गुरुदेव की पुस्तक ‘उपासना के दो चरण जप और ध्यान’ देखी जा सकती है।
व्यक्तिगत स्तर पर यह अनुभूति जगाएँ कि दिव्य चेतना के प्राणप्रवाह के साथ कितना जुड़ पाए। आदर्शों को जीवन में उतारने का अभ्यास कितना संपन्न हुआ।
परिवार संस्था के स्तर पर एवं सामूहिक स्तर पर सुगम प्रार्थना, व्यवस्थित उपासना व जीवन-साधना का अभ्यास प्रखर बनाएँ। समाज के हर वर्ग, संप्रदाय को लोगों को उनकी श्रद्धा के अनुरूप उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना हेतु प्रेरित करें। स्थान-स्थान पर सामूहिक साधना सत्रों का समय-समय पर आयोजन करें।
‘सबके लिए सुगम उपासना-साधना’ पुस्तिका को इस आँदोलन के लिए माध्यम बनाएँ।
(2) शिक्षा आँदोलन
निरक्षरता उन्मूलन के लिए संकल्पित हों। अपने स्तर पर क्या प्रयास हो सकता है, सोचें व लागू करें।
शिक्षा जीवन विद्या के साथ जुड़े। जीवन जीने की कला के सूत्र शिक्षा के साथ गूँथकर पहुँचाए जाएँ। ‘शिक्षा ही नहीं, विद्या भी’ पुस्तिका को आधार बनाएँ।
बालसंस्कारशालाएँ चलें, विद्यालयों में विचार क्राँति का आलोक पहुँचे। नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम के साथ जुड़े।
संस्कृति मंडल बनाएँ। भारतीय संस्कृति ज्ञानपरीक्षा में भागीदारी कराएँ।
कामकाजी विद्यालय की योजना को लागू करें।
(3) स्वास्थ्य आँदोलन
आहार-विहार, चिंतन, जीवन शैली को संतुलित बनाएँ।
योग-व्यायाम-प्राणायाम आदि दिनचर्या का अंग बने।
स्वच्छता संवर्द्धन के प्रयोगों को बढ़ाएँ।
लाठी व्यायाम, सामूहिक श्रमदान की प्रवृत्ति को बढ़ावा दें।
वनौषधि उपचार को आधुनिक औषधियों की तुलना में वरीयता दें। उन्हें स्वयं भी अपनाएँ, उनके प्रचार-प्रसार हेतु स्मृति उपवनों (जड़ी-बूटी उद्यानों) को बढ़ावा दें तथा वैकल्पिक चिकित्सा तंत्र को खड़ा करें।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों को, चिकित्सकों को जनस्वास्थ्य शिक्षा हेतु प्रेरित करें, एक आँदोलन का रूप दें तथा संपन्नों द्वारा ऐसी सुविधाएँ विनिर्मित हों, इसके लिए प्रेरित करें।
(4) स्वावलंबन आँदोलन
अपना काम स्वयं करने की आदत डालें।
श्रम का सम्मान करें, रचनात्मक श्रम का महत्त्व जन-जन को बताएँ।
स्वयं सहायता बचत समूहों का निर्माण करें एवं इनके आधार पर स्वदेशी आँदोलन को गति दें।
गौ केंद्रित अर्थव्यवस्था को गति देने हेतु ऐसे केंद्र खड़े करें। कुटीर उद्योग गोपालन पर केंद्रित हो स्थान-स्थान पर चल पड़ें।
सभी के कौशल-श्रम का आर्थिक लाभ उन्हें मिले, इसके लिए सहकारी आँदोलन के स्तर पर इन प्रोजेक्ट्स को चलाएँ।
(5) पर्यावरण आँदोलन
प्रकृति का यज्ञीय चक्र व्यवस्थित बने, इसके लिए जन-जागरूकता बढ़ाएँ।
क्षणिक-अनगढ़ सुख के लिए, व्यसनों के लिए प्रकृति का शोषण कर बने फैशन उत्पादों के विरुद्ध आँदोलन चलाएँ।
कचरे का सही डिस्पोजल हो, इसकी व्यवस्था बनाएँ।
हरीतिमा संवर्द्धन हेतु लोगों को प्रेरित करें। न्यूनतम से आरंभ करें, पर देखें कि लगाए वृक्ष पनप रहे हैं कि नहीं।
प्लास्टिक कल्वर से संघर्ष करें। अपनी आदतें पहले ठीक करें।
सूक्ष्म पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रकृति को जड़ नहीं चेतन, अपनी माँ समान मानकर डीप इकोलॉजी के महत्त्व को स्वीकार करें।
(6) व्यसन मुक्ति/कुरीति उन्मूलन आँदोलन
व्यसन से बचाएँ, सृजन में लगाएँ, कुरीतियों में लगने वाला श्रम, समय, साधन श्रेष्ठ कार्यों में लगाएँ। जनशिक्षा हेतु आँदोलन छेड़ें।
व्यसन मुक्ति हेतु संकल्पशक्ति जगाएँ। देव दक्षिणा आँदोलन को गति दें।
विद्यालयों, विभिन्न संगठनों, संप्रदायों द्वारा इस आँदोलन को गति दिलाएँ।
व्यसन-कुरीति छोड़ने वालों को सम्मानित करें, उनके विषय में सबको बताएँ।
(7) नारी जागरण आँदोलन
नारी स्वयं में सक्षम-समर्थ बन अन्य नारियों को साथ ल चल सके, इस योग्य उसे खड़ा करें।
नारी का आत्मविश्वास जगाएँ, सुरक्षा बोध, स्वावलंबन, सुसंस्कारिता का ज्ञान कराएँ।
नारी को लोहे-सोने की जंजीरों से मुक्त कराएँ।
बेटा-बेटी, बेटी-बहू के भेद मिटें। नारी के प्रति नारी की संवेदना जागे।
क्षेत्रीय नारी संगठन खड़े हों। प्रशिक्षण क्रम भी चले। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने हेतु स्वावलंबन तंत्र बने।