संन्यासी जैसा (kahani)

July 2001

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उन दिनों पुरोहितों की चाँदी थी। कथा और कर्मकाँड के सहारे वे विपुल दक्षिणा बटोरते थे। पद्मनाभ ने नया मार्गदर्शन किया। वे उच्च कोटि के विद्वान् थे। उन्होंने लकड़ी काटकर पेट भरने का धंधा अपनाया। धर्मकृत्यों को मन लगाकर करते रहे। जो मिलता, उसे वहाँ के सत्कार्यों में लगा देते।

जनता ने उन्हें भरपूर मान दिया। लालची पुरोहितों को मुँह छिपाए फिरते और पद्मनाभ पर अनर्गल आक्षेप लगाते देखा गया। तो भी वे अपने समय के लोकप्रिय पुरोहित रहे और भरपूर मान मिला। उन्होंने यह तथ्य अपने जीवन से प्रतिपादित किया कि पौरोहित्य को परमार्थ भाव से किया जा सकता है। व्यवसायी भाव उसके लिए आवश्यक नहीं।

दुर्योधन को अहंकार दिखाए बिना चैन नहीं पड़ता था। पाँडव वनवास में थे। दुर्योधन को महलों में संतोष न हुआ, अपने वैभव का प्रदर्शन करने जंगल के उसी क्षेत्र में गया, जहाँ पाँडव रह रहे थे। वहाँ अपने को सर्वसमर्थ सिद्ध करने के लिए मनमाने ढंग से जश्न मनाने लगा। अहंकारी में शालीनता-सौजन्य नहीं रह जाता। वह अपने आगे किसी को कुछ भी नहीं समझता। उसी क्रम में कौरव गंधर्वों के सरोवर को गंदा करने लगे, रोकने पर भी न माने। क्रुद्ध होकर गंधर्वराज ने उन्हें बंदी बना लिया। पता पड़ने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजकर अपने मित्र गंधर्वराज से उन्हें मुक्त कराया। दुर्योधन को शर्म से सिर झुकाना पड़ा।

अपने पिता बिंदुसार से सम्राट् अशोक को सुविस्तृत राज्य प्राप्त हुआ था। पर उसकी तृष्णा और अहमन्यता ने उसे चैन नहीं लेने दिया। आस-पास के छोटे-मोटे राज्य उसने अपनी विशाल सेना के बल पर जीते और अपने राज्य में मिला जिए।

उसके मन में कलिंग राज्य पर आक्रमण करने की उमंग आई। कलिंग धर्मात्मा भी था और साहसी भी। उसकी सेना तथा प्रजा ने अशोक के आक्रमण का पूरा मुकाबला किया। उसमें प्रायः सारी आबादी मृत्यु के मुँह में चली गई या घायल हो गई। अब उस देश की महिलाओं ने तलवार उठाई। अशोक इस सेना को देखकर चकित रह गया। वह उस देश में भ्रमण के लिए गया, तो सर्वत्र लाशें ही पटी देखीं और खून की धारा बह रही थी।

अशोक का मन पाप की आग से जलने लगा। उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और जो कुछ राज्य वैभव था, उस सारे धन से बौद्ध के प्रसार तथा उपयोगी धर्म संस्थान बनवाए। अपने पुत्र और पुत्री को धर्मप्रचार के लिए समर्पित कर दिया।

परिवर्तन इसी को हिते हैं। एक क्रूर और आतताई कहा जाने वाला अशोक बदला, तो प्रायश्चित की आग में तपकर वह एक संन्यासी जैसा हो गया।


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